पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/४१

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कपड़ों की बनावट ऐसी हो कि कपड़े तंग न हों और चलने, फिरने, खेलने, कूदने, उठने, बैठने और काम करने में किसी तरह की रुकावट न हो। भोजन शरीर एक एन्जिन है जिसमें कोयला पानी की हमेशा जरूरत रहती है। शरीर का कोयला पानी, खाना पीना है। इसीसे शरीर चलता है। भोजन शरीर को गर्म रखता है, पुष्ट करता है और काम के योग्य बनाता है। भोजन भूख लगने पर ही खाना चाहिए । बासी खाना, सड़े गले फल, तरकारियाँ, कई दिन की रक्खी हुई मिठाइयाँ आदि नहीं खानी चाहिये। गेहूँ, जौ, चना आदि अन्न, हर तरह की दालें, शाक, ताज़ फल, दूध, दही, मक्खन, घी, शकर आदि ये सव भोजन के उत्तम पौष्टिक पदार्थ हैं। मैदा, घी, मावा आदि से बनी मिठाइयाँ कभी कभी खानी चाहिये । ये भी ताज़ा हों। इनके अधिक खाने से अजीर्ण हो जाता है, भूख बन्द हो जाती है, पेट खराब हो जाता है। खाने कासमय नियत रखना चाहिए। कुछ दिनों के अभ्यास के बाद ठीक वक्त पर भूख लगेगी। खाना न बहुत जल्दी खाना चाहिए न बहुत देर में । खूब चवाकर निगलना चाहिए। हाथ पैर और मुँह धोकर भोजन खाने बैठो और खाने से पहले एक घुट जल पियो।