पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/३४

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रहना नीवेतसीजी है। खाते वक्त भी सिर्फ खाने में ध्यान रखना ठीक नहीं, धीरे-धीरे उपयुक्त वातचीत परिहास होते रहना चाहिए । पाँचवाँ सलीका घर के और अपने सामान तथा चीज़ वस्तु को सम्हालना, करीने से रखना, सजाना, रद्दी चीज़ों को मरम्मत कर उनका उपयोग करना आदि हैं। जिन कन्याओं को इस वात का सलीका वचपन से नहीं सिखाया जाता, वे कभी अपने घर-गृहस्थी को सुन्दर नहीं बना सकतीं । बहुधा हम देखते हैं कि कीमती कपड़े, फटे, मैले, बेतरतीवी से इधर उधर पड़े खराब होते रहते हैं। बच्चों के कपड़ों में कहीं दाग धब्बे लगे हैं-कहीं बटन टूटे हैं, कहीं जूते का फीता तस्मा ही गायव । धोवी को कपड़े डालती हैं तो फटे और मरम्मत डाल देती हैं। फटे पुराने कपड़ों का तो कोई सदुपयोग ही नहीं होता। हर एक चीज़ तितर वितर पड़ी होती है। परन्तु जो कन्याएं घर की सजावट सम्हाल और करीने का ठीक-ठीक अभ्यास करती हैं उनका दरिद्र घर भी खूब सजा धजा सुन्दर रहता है। छठा तरीका वाहर वालों और मेहमानों के सामने अदव-कायदे से रहना है। यह सच है कि बनावट और दिखावा बुरी चीज है। परन्तु मेहमानों और बाहरी आदमियों के सामने मर्यादा, सभ्यता और अदव कायदे का पूरा ध्यान रखना बहुत जरूरी है। कन्याओं के लिये हम नीचे कुछ सभ्यता और अदव कायदे के नियम लिखते हैं, कन्याओं को उचित है कि वे इनका पालन करें। १-बातचीत के सम्बंध में ५ नियम- .१-जोर से मत बोलो। २-कडा मत बोलो। ३-इतराकर २६