पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/३३

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स्वर में मृदु स्वर में कहना, बात कहती सीधी खड़ी होना। मुख या हाथ पैर न हिलाना, यह बातचीत का ढंग होना चाहिए।

चौथा सलीका भोजन करने का होना आवश्यक है। भोजन करने के लिए बैठना सबसे मुख्य बात है। आसन या चौकी पर हमेशा पालथी मार कर सीधी बैठना चाहिए। यदि कुर्सी पर बैठकर भोजन करना है तो सीधी बैठना चाहिए। भोजन करते समय दोनों हाथों को जूठा न करना चाहिए। खाते समय इस बात का ध्यान रखा जाय कि कपड़ों पर भोजन की बूंदें न गिर पड़ें, दूसरी बात यह है कि खाने की आवाज़ न सुनाई पड़े। चप चप करके खाना या सुड़ सुड़ करके सपोटना बुरी आदत है। खाते समय मुँह में भोजन दीख पड़ना भी दूषित है। ऊँचा मुँह करके खाना या बहुत सा ठूँस-ठूँस कर खाना भी ठीक नहीं। न इतना जल्दी खाया जाय कि अन्धाधुन्ध ठूस लिया जाय और न इतना देर में खाया जाय कि बैठे-बैठे घन्टों गुजर जाँय। खाते समय हाथ और मुख खाद्य पदार्थों से भर न जाय इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए। उँगली या अँगूठा चाटना ठीक नहीं, यदि बोला जाय तो बहुत कम, और इस होशियारी से कि न तो मुँह का कौर गिरे, न सामने वालों को दीखे, न स्वर में अन्तर आवे।

बातचीत का विषय भी ऐसा न हो कि सुनने वालों को घृणा उत्पन्न हो या वे फूहड़ समझें। चाय आदि पानी, या फलाहार की पार्टियों में जहाँ ज़्यादा बेतकल्लुफ़ी न हो आँख बचाकर दूसरों को खाते पीते देखते रहना चाहिए। ऐसी पार्टियों में पेट भर नहीं खाया जाता, विनोद के साथ जल पान मात्र किया जाता है। ऐसे अवसरों पर सबके बाद तक खाते रहना ठीक नहीं––न तश्तरी सफाचट करना ही चाहिए। ऐसे स्थानों पर मर भूखों की तरह खाद्य पदार्थों की ओर एक टक देखते

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