बुद्धिमानी से उनके रहन, सहन, व्यवहार को ऐसा उत्तम बना दें कि वह देवी की प्रतिमा प्रतीत हो, देखते ही लोग कह उठें कि वाह––कैसी पवित्र बिटिया है।
★★★
तीसरा अध्याय
कन्याओं की शिक्षा
'पढ़ लिखकर कन्याएँ बिगड़ जावेंगी' यह कहने के दिन अब नहीं रहे। कन्याओं को लड़कों से भी अधिक सावधानी से शिक्षा देने की जरूरत है, यह बात संसार के विद्वान मान गए हैं।
कन्याओं की शिक्षा में लड़कों की शिक्षा की अपेक्षा कुछ विशेषता होनी चाहिए। इसके दो कारण हैं––एक तो यह कि कन्याओं को पढ़ने का समय बहुत कम मिलता है। वे १६-१७ वर्ष की अवस्था में तो गृहस्थी में फँस जाती है, इतने समय में भी इन्हें नित्य जीवन और गृहस्थ सम्बन्धी बहुत से काम सीखने पड़ते हैं। दूसरे उनके मस्तिष्क के विकास की अपेक्षा भावुकता की अधिक आवश्यकता पड़ती है। इन्हें न तो कोई नौकरी करनी पड़ती है न कोई गम्भीर तात्विक कार्य। प्रायः उन्हें गृहस्थी के कार्य में ही लग जाना पड़ता है। इसलिए लड़कों की अपेक्षा इनकी शिक्षा भिन्न प्रकार की होनी चाहिए।
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