पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/२२

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यदि जन्म के समय कन्या को ब्राह्मी, शहद, घी, एक एक रत्ती चटा दिया जाय तो उसका कण्ठ स्वर बहुत साफ हो जायेगा। ब्राह्मी का सेवन उसे बाद में भी कराया जा सकता है।

यदि कन्याएँ स्कूल जाती हों और स्कूल का समय प्रातःकाल का हो तो बहुधा उन्हें बासी खाना दिया जाता है। परन्तु यह बहुत अनुचित है। इससे उत्तम तो उनका भूखा रहना ही है। प्रातःकाल का सब से अच्छा नाश्ता उनके लिये दूध है।

१० वर्ष की कन्या को एक अलग कमरा दिया जाना चाहिए। उसमें उसके कपड़े लत्ते; पुस्तकें आदि सब अलग हों, और वह उन्हें स्वयं सज़ा कर रक्खे, और स्वतंत्रता पूर्वक व्यवस्था करे। कन्याओं से कभी भी कठोर न बोले, गाली न दें, न उन्हें ढीठ बनने दिया जाय, हंसी मजाक के समय भी उन्हें पास न बैठने दिया जाय। प्रायः स्त्रियां कन्याओं के सामने अश्लील बातें बेधड़क किया करती हैं––यह किसी भी हालत में उचित नहीं––उन्हें आज्ञाकारिणी, संकेत से समझ जाने वाली, विनीत, व्यवस्थित और मृदुभाषिणी बनाना चाहिए। बुरी आदतें बुरे गीत और चिल्लाकर बोलना, रोना, हठ करना, फैल जाना, कपड़े, हाथ और शरीर गन्दा रखना, यह न सीखने दें।

प्रायः कन्याएँ खाने पीने की लालची होती हैं। समय-समय पर उनकी अभिरुचि की वस्तु उन्हें भर पेट खिला दी जाय। और उन्हें समझा दिया जाय कि पराये घर जाकर वे खाने पीने की चीजों को लालच भरी दृष्टि से न देखे, बारम्बार खाने की हठ न करे।

यह बात भली भाँति समझ लेनी चाहिए कि कन्याएँ बहुत कोमल, मधुर और शीघ्र अनुकूल हो जाने योग्य होती हैं। अतः

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