पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/२१

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कन्याओं को सदैव स्वच्छ, हलके, ढीले और अधिकतर सफ़ेद रंग के वस्त्र पहिनाने चाहिये, रंगीन वस्त्र यदि हों तो बहुत हल्के रंग के हों। रेशमी वस्त्र कुँवारी लड़कियों के लिए अच्छे नहीं। सूती, आसानी से धुल सकने वाले वस्त्र ही पहिनाना उचित है। रंगीन वस्त्रों का पहनना प्रायः चमड़ी और स्वास्थ्य को दूषित करता है। वर्षा ऋतु में रेशमी सर्दी में ऊनी वस्त्र पहनाये जा सकते हैं। ऊन और रेशम दोनों ही में सील को चूसने की शक्ति होती है। यदि रंगीन वस्त्र पहिनने ही आवश्यक हो तो इस प्रकार पहिने––

ग्रीष्म ऋतु में सफ़ेद, बर्सात में सन्दली, नीला, पील, हरा, सर्दियों में गुलाबी, लाल, बैंगनी, आदि। घाघरा पहनने का रिवाज बिलकुल बंद कर देना चाहिये। यह अनावश्यक, भारी और धुलने और साफ़ होने के बिलकुल ही अयोग्य है। तथा पेडू मसाना और कुक्षिप्रदेश पर भार डालता है। उसके वजन को सम्भाले रखने के लिये कस कर बाँधना पड़ता है, जिससे कमर में उसका चिन्ह पड़ जाता है और पेट लटक आता है।

धोती या साड़ी ही स्यानी कन्याओं के लिये उत्तम पोशाक है। १० वर्ष से अधिक आयु की कन्याओं को फ्रॉक, जो पिंडलियों तक नीचा हो पहिनाना चाहिए। कोहनी से नीचे की बाँहें बिलकुल खुली रहें। मोज़े किसी भी हालत में कुँवारी कन्याओं को न पहनाए जाएँ। मोज़े पहनने से रक्त के प्रवाह में अन्तर पड़ता है। तथा समय से प्रथम ही ऋतुकाल होने का भय रहता है। हर हालत में फ्रॉक या साड़ी के नीचे, चाहे कन्या कितनी ही कम आयु की हो जाँघिया अवश्य ही पहिनाना चाहिए। नंगा रहना कन्याओं के लिए ख़तरनाक और भद्दा मालूम होता है।

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