पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/१९७

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1 फैलानो और उसका केवल पंजाही धरती पर टेके रक्खो। जब एक पैर जम जाए, तब दूसरा भी फैला दो । हाथ इस समय सीधे विना सुड़े हों । पैर दोनों पंजों पर स्तर रहें । सिर नीचे झुका हुआ रहे । हाथों का फासला छाती की चौड़ाई के बराबर हो। १३–अब कन्धों और कुहनी पर पूरा बल देकर धीरे-धीरे भुको । यथा सम्भव पेट या छाती को धरती से न छुआना चाहिए। १४-अब धीरे २ ऊपर को हाथों के बल पर उठो, और सिर को यथा सम्भव ऊपर उठा दो। यह क्रिया गर्भवती स्त्रीन करे इससे सीना और पेट बनेगा, इस क्रिया में शुरू से अन्ताक एक ही श्वास लेना चाहिये । प्रारम्भ में दुर्वल स्त्रिय बीच में इच्छानुसार साँस ले सकती हैं। इसके सिवा पुरुषोचित व्यायाम भी जो स्त्रियों के लिये अनुकूल प्रतीत हो, स्त्रियाँ कर सकती हैं।गर्भावस्था में भ्रमण और साधारण घर के काम काज करना उनके लिए उत्तम है। एवम् चक्की पीसना, पानी बैंचना, और दूध चलाना, स्त्रियों के लिये उत्कृष्ट व्यायाम है। १५-इस प्रकार वैठकर पैर के अंगूठों को जोर से खींचो और गहरा स्वास लो।सीना खूब तान लो, गर्दन सीधी रक्खो, फिर एकाएक ज़ोर से श्वास फेंक दो, येह अभ्यास सूर्य के सम्मुख बैठकर करना चाहिये । इससे उदर, छाती की दुर्बलता, तथा बवासीर का रोग दूर होता है। पुरुष भी इसी भांति व्यायाम कर सकते हैं। उन्हें व्यायामों के लाभों पर ध्यान देना चाहिए। F "