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. अवर चुंबित भाल हिमाचल । शुभ्र तुषार किरीटिनी। प्रथम प्रभात उदित.तवगगने। प्रथम सामरव तव तपोवने । प्रथम प्रचारित तव वन भवने । ज्ञान धर्म कत काव्य काहिनी! चिरकल्याणमयी तुमि धन्यं, देश विदेशे वितरिछो अन्न, जान्हवी जमुना विगलिद करुणा, पुण्य पीयूष-स्तन्यवाहिनी ! राग झिंझोटी (गजल) ऐमाभूमि तेरे चरणों में सिर नवाऊं। मैं भक्ति भेट अपनी, तेरी शरण में लाऊं। माथे पे तू हो चन्दन, छाती पे तू हो माला। जिह्वा पे गीत तू हो, मैं तेरा नाम गाऊं। जिससे सपूत उपजे श्रीराम कृष्ण जैसे। उस तेरी धूलि को मैं निज सीस पर चढ़ाऊं। सेवा में तेरी सारे दुःखों को भूल जाऊं। वह पुण्य नाम तेरा प्रतिदिन सुन सुनाऊं। तेरे ही काम पाऊं तेरा ही प्रेम गाऊं। मन और देह तुझ पर बलिदान कर चढ़ाऊं १८०