पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/१८८

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चलाते हैं। अनामिका मे वेड़ा पहनते हैं। जिससे सुई दबाने मे उसकी रक्षा होती है। सदा सुई डोरा कपड़े के अनुसार मोटा पतला लेना चाहिए। गजी तथा गाढ़ा खद्दर के लिए चर्खे के कते मोटे डोरे, सुई भी मध्यम चाहिए। गोटा, पट्टा, गोखरू के लिए सुई बहुत महीन और पेचक का डोरा लेना चाहिए । सिलाई भिन्न २ प्रकार की होती है। साधारण सिलाई में दो टुकड़ों के छोर मिला कर जोड़ देते हैं। इसी को भीतर की ओर उलट कर सीने से उलटना कहते हैं। इसी को तुरपना भी कहते हैं। यह भी दो प्रकार का होता है। १-गोल, दूसरा चौड़ा। तीसरी सिलाई बखिये की होती है। जो इस प्रकार की जाती है कि जहाँ से सुई चुभोई वहाँ से फिर पिछाड़ी को लेकर आधी दूर पर चुभाई और पहले के बराबर दूरी पर निकाली फिर पीछे को लाकर जहाँ से पहिले सुई निकाली थी उसी छेद में उसे पिरो कर उतनी ही दूर जा निकाली। इसी भाँति सिलाई का सिलसिला जारी रखो तो ऊपर तो बरावर और दोहरी सिलाई होती चली जायगी। इसी मे कांटेदार बखिया होती है। जिसमें लहर पड़ती जाती है। वह नीचे को भीतर की ओर होती है और वखिया दो ओर को होती जाती है। तेपची और जाली की सिलाई मजबूत डोरे से की जाती है। इसका काम करती बार कपड़े के दोनों छोरों को उलट कर तुरप देते हैं। तव वह चमकती है। फलीता काला या लाल रंग का एक डोरा होता है, जो मगजी, संजाफ के किनारे लगाया जाता है। संजाफ़ या गोट भी दो प्रकार से लगाई जाती है। एक सुदेव-सीधे कपड़े में से सीधी पट्टी कतर कर बनाई जाती है, दूसरी औरेव जो दो प्रकार १७५