खुराक का अनुमान करते समय कन्या की श्रायु, शरीर- नम्पत्ति और परिस्थिति देखकर हरएक वस्तु का अनुमान करना गहिये । परन्तु.हर हालत में इस बात का पूरा ध्यान रखा जाय के खुराक ऐसी हो जिस में तीन गुण हो।१-मिकदार में कम हो, २-ताकत देने वाली हो। ३-जल्द हजम होनेवाली हो। मलाई, दही फलों का रस, मक्खन, मेवा, मुरब्बे, खर- चूजे की मींगें, ऐसी ही चीजें हैं। गेहूँ और चना एवं चाँवल उत्तम आहार पदार्थ हैं। बकरी की तरह दिन भर चरना या अनाप-शनाप डट कर भोजन करना-जहाँ उनके शरीर को कुडौल बनायगा, वहाँ उनकी प्रांदतों को भी विगाड़ेगा। मसाले, जो कन्याओं के भोजन में डाले जाएँ वह बहुत उत्तम होने चाहिए । इलायची, लोग, जावित्री-जाफरान आदि चीजें अधिक डाली जाय, यों भी खिलाई जाय । इनसे कन्याओं के पसीने और मुख की दुर्गन्धि दूर होगी तथा उनका स्वाँस और पसीना सुगन्धित होगा। कण्ठ स्वर खुलेगा। पान कन्याओं को विवाह से पूर्व यथा सम्भव नहीं खाने देना चाहिए । स्मरण रहे कि १३ और १६ वर्ष की आयु में लड़कियों में यौवन का उदय होता है । उस समय उनका कण्ठ स्वर और उच्चारणशैली में भी परिवर्तन हो जाता है । इसका कारण स्वर नालिका और जिह्वा के कोमल अवयवों में स्वाभाविक परिवर्तन है। यदि लड़कियों को इस अवस्था से पूर्व पान खाने दिया जायगा तो स्वरनाली और जिह्वा की पेशियों पर पान के चरपरे अंश और चूने का तीक्ष्ण प्रभाव पड़कर आवाज को खोखली और जिह्वा को मोटी बना देगा। इससे उच्चारण में दोष तथा प्राचाज में भद्दापन पैदा हो जाएगा। .
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