३६ परन्तु देखा जाय तो भारत गर्म देश है । इसलिये जो स्त्रियां पाक-विद्या में निपुण होना चाहती हैं उन्हें इस बात का विचार करना चाहिये कि किस ऋतु में कैसा भोजन बनाया जाय, क्या-क्या मसाले इस्तेमाल किये जायं, खास-खास दाल, शाक और पाक खास रीति से बनाये जायं, उन्हें ऋतु के लिहाज से देर तक किस भांति रक्खा जाय-ये सारी बातें पाक-विद्या से सम्बन्ध रखती हैं। पाक विद्या की जान सुरुचि है । पदार्थ चाहे घटिया हो या बढ़िया,, यदि वह सुरुचि-सम्पन्न है तो ठीक, वरना किसी भी काम का नहीं । पाक- विद्या का महत्व दो बातों पर निर्भर है पहला खाद्य पदार्थ रुचिकर बन जाय, दूसरे वह सुपाच्य बन जाय । ये ही दो गुण हैं जिनके आधार पर खाद्य पदार्थ स्वास्थ्य वर्द्धक और जीवन-दाता हो सकता है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि उत्तम भोजन ही के आधार पर स्वास्थ्य और जीवन निर्भर है, और ये दोनों चीजें हैं जिनके मूल्य बादशाहतों से भी ज्यादा कीमती हैं । इसीलिये कहते हैं कि जो कन्या पाक-विद्या को जानती है वह स्त्री नहीं साक्षात् अन्नपूर्णा देवी बन जाती है। अमीर घरानों में यह रिवाज सा पड़ गया है कि प्रायः रसोइये या महाराजिन भोजन बनाया करते हैं । ऐसे महत्वपूर्ण काम को अपढ़ और स्वार्थी नौकरों पर छोड़ देना अत्यन्त दुःख की बात है । प्राचीन काल इतिहास से पता लगता है कि महाराजा नल और भीम जैसे प्रतिष्ठित योद्धा पाक-विद्या के धुरन्धर प्राचार्य थे । रसोइये और महाराजिन कितनी गन्दी होती हैं तथा किस प्रकार नीरस रसोई बनाती हैं इसका पता तब चलता है जबकिसी रईस के घर देर तक रहा जाय। हमने बहुत से रईसों के घरों पर भोजन किया है-हम कह सकते हैं कि उससे हमें कुछ भी तृप्ति नहीं हुई। कहीं-कहीं तो अत्यन्त अरुचिकर ही प्रतीत हुआ है सोचने की बात है कि जिस भोजन के द्वारा शरीर, प्राण मांस, रक्त, बुद्धि और जीवन बनता है उसे कैसे गैरों को सौंप दिया जाता है।
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