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पहल शुरू हुई। नये ड्रामे का अगुआ नारवे का मशहूर नाटक लिखने वाला हेनरिक इब्सन (Henrik Ibsen) हुआ। बरनार्ड शॉ, गाल्सवर्दी और दूसरे लेखकों ने इंगलिस्तान में और ब्रीयू, हाऊप्टमैन इत्यादि ने फ्रांस और जर्मनी में इस के क़दमों पर चल कर जस कमाया।

उन्नीस्वीं सदी में योरुप की जातियों में बड़ी भारी तब्दीली हुई जिसका गहरा असर उनके समाज, रहन सहन के ढंग, कला और व्यापार के तरीक़े और मुल्क के संगठन और प्रबंध पर पड़ा। मनुष्य की ज़िन्दगी का कोई पहलू इस प्रभाव से न बचा। आज़ादी, समता, और देश प्रेम के भावों ने लोगों के दिलों को पलट दिया। सच तो यह है कि ऐसे ज़माने बहुत कम हुए हैं जिनमें मनुष्य और समाज के जीवन में जोरों की उलट फेर हुई हो।

हर एक आन्दोलन में नये पुराने, गुज़रे हुए और आने वाले ज़माने का संघर्ष होता है। बात यह है कि जब परिवर्त्तन की चाल तेज़ होती है और संघर्ष की दशा विकट-तो हमारे भावों में बेचैनी पैदा होती है और वह प्रगट होने की राह ढूंढते हैं। न दबने वाले भाव भड़क उठते हैं, लिखने वाले का दिल ठेस खाता है और वह