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अङ्क १]
[दृश्य १
हड़ताल
एडगार
इतना तो मैं भी जानता हूँ साहब, लेकिन हम लोग अब बहुत दूर बढ़े जा रहे हैं।
ऐंथ्वनी
हर्गिज़ नहीं।
[सब एक दूसरे का मुँह ताकते हैं]
वैंकलिन
सभापति महोदय, शौक़ की बात अलग है, हमें यह देखना है कि हम कर क्या रहे हैं।
ऐंथ्वनी
मजूरों से एकबार दबे तो फिर हमेशा दबते रहना पड़ेगा। कभी इसका अन्त न होगा।
वैंकलिन
मैं इसे मानता हूँ, लेकिन-
[ऐंथ्वनी सिर हिलाता है
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