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अङ्क ३]
[दृश्य १
हड़ताल
ऐंथ्वनी
और न्याय का पद उससे भी ऊँचा है।
एडगार
मगर एक आदमी के लिए जो न्याय है, वह दूसरे के लिए अन्याय है।
ऐंथ्वनी
[अपने उद्गार को दबाकर]
तुम मुझ पर अन्याय का दोष लगाते हो जिसमें पशुता है, निर्दयता है—
[एडगार घृणासूचक संकेत करता है। सब डर जाते हैं।
बैंकलिन
ठहरिए, ठहरिए, प्रधान जी।
ऐंथ्वनी
[कठोर स्वर में]
यह मेरे ही पुत्र के शब्द हैं। यह उस युग के शब्द हैं,
जिसे मैं नहीं समझता। यह दुर्बल संतानों के शब्द हैं।
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