यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६७
दूसरा अध्याय।


मनमानी विवेचना जरूर करने लगे थे। योरप की वर्तमान अवस्था में जो उन्नति देख पड़ती है वह इन्हीं तीन समयों में मिली हुई स्फूर्ति और उत्तेजना का फल है। मनोविचार में, रूढ़िपरम्परा में, या सामाजिक स्थिति में जितनी उन्नति पीछेले हुई, जितना सुधार बाद में हुआ, सबकी जड़ का पता इन्ही में से एक न एक समय में मिलता है। इस बात के चिह्न बहुत दिनों से दिखलाई दे रहे हैं कि पूर्वोक्त तीनों अवसरों में मिले हुए स्फुरण और उत्साह की शक्ति बिलकुल खर्च हो गई है। इस समय कुछ भी बाकी नहीं रही। अतएव विचार और विवेचना की स्वाधीनता, अर्थात् मानसिक स्वतंत्रता की आवश्यकता, को यदि हम फिर से न प्रतिपादान करेंगे-फिर से न दिखलावेंगे तो हम कभी आगे न बढ़ सकेंगे।

अब हम इस विवेचना के दूसरे हिस्से का विचार करते हैं और मान लेते हैं कि जितनी बातें या जितने सत, इस समय प्रचलित हैं उनमें से एक भी गलत नहीं; सब सही हैं। यहां पर यह देखना है कि यदि उन बातों की सचाई की खुले खजाने, साफ साफ, और बेरोक विवेचना न होगी तो लोग उनको क्या समझेगे; उनको कितनी योग्यता देंगे-अर्थात् उन बातों का कैला और कितना असर लोगों पर होगा! जो आदमी किसी विषय में अपना विचार दृढ़ कर लेता है। अपनी राय को मजबूती के साथ कायम कर लेता है; वह इस बात को खुशी से कभी नहीं कबूल करता कि उसकी राय के गलत होने की भी सम्भावना है। परन्तु उसको इस बात का खयाल रखना चाहिए कि किलकी राय चाहे जितनी सही हो, पर यदि उसके सही होने के प्रमाणों का निडर होकर बार बार और पूरे तौर पर विवेचना न होगी तो लोग उसे, एक पुरानी और निर्जीव रूढ़ि समझ कर मान लेंगे; परन्तु सजीव और सच बात समझ कर उसका आदर न करेंगे।

कुछ आदमी ऐसे हैं कि जिस बात को वे सच समझते हैं उसे यदि किसी दूसरे ने भी निःशंक होकर सच कह दिया तो वे इतने ही अनुमोदन को यस समझ लेते हैं। फिर चाहे ऐसे अनुमोदनकर्ता को, उस वात के मूलभूत प्रमाणोंका का कुछ भी ज्ञान न हो और उसके प्रतिकूल तुच्छ आक्षेपों का समाधान करने की भी उसमें शक्ति न हो। इस तरह ले आदमी पहले बहुत थे; परन्तु खुशी की बात है, अब वे उतने नहीं है। ऐसे आदमियों की बात जहां एक बार मान ली गई, जहां उनके मत का प्रचार एक बार हो गया, तहां