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स्वाधीनता।

उसकी जड़े तक खोद कर फेंक दी गईं। यदि इंगलैण्ड की रानी मेरी कुछ दिन और जिन्दा रहती, या उसके बाद गद्दी पर बैठनेवाली रानी एलिजबथे जल्द सर जाती, तो इंगलैण्ड में भी वही दशा होती-अर्थात् प्राटेस्टेण्ट मत की जड़ें वहांसे भी खोद कर फेंक दी जातीं। पाखण्डी, नास्तिक या विपथ.गामी माने गये प्राटेस्टेण्ट मत के अनुयायियों के बहुत ही प्रबल होने के कारण जहां जहां उनके विरोधियों का जोर नहीं चला, वहां वहां छोड़कर, और सब कहीं झूठ की ही जीत हुई-सतानेवालों का ही विजय रहा। रोम की बादशाहत के समय में क्रिश्चियन धर्म के जड़ से उखड़ जाने की नौबत आ गई थी। मुझे विश्वास है, इस विषय में किसीको सन्देह न होगा । परन्तु उसके समूल नाश न हो. जाने का कारण हुआ कि उस समय जो विरोध होता था वह कभी कभी, प्रसङ्ग आने पर, होता था; हमेशा नहीं। फिर, वह विरोध थोड़े ही दिनों तक रहता था । बीच बीच में, बहुत दिनों तक, प्राटेस्टेण्ट धर्म के प्रतिकूला कोई कुछ न कहता था । इसीसे यह धर्म, आखिरकार, रोम में फैल गया; और, धीरे धीरे, प्रबल भी हो गया। यह एक प्रकार की भारी भूल है, यह एक तरह की झूठी कल्पना है, कि, सच होने ही के कारण, सच में कोई ऐसी विलक्षण शक्ति है कि सच बोलनेवालों को या सच्चे सिद्धांतों का प्रचार करनेवालों को काल-कोठरी में बन्द करने अथवा सूली पर चढ़ाने से भी सच की जरूर ही जीत होती है। आदमी झठ के अकसर जितने अनुरागी या अभिमानी होते हैं उससे अधिक सच के वे नहीं होते; और कानून ही को नहीं, किन्तु सामाजिक प्रतिबंध या दण्ड को भी काफी तौर पर काम में लाने से, झूठ और सच, दोनों, का प्रचार, बहुत करके, रोक दिया जा सकता है । सच में एक यह विशेषता है, एक यह प्रधानता है कि कोई एक बार, दो बार, तीन बार या चाहे.जितने दार उसका लोप करे तोभी समय समय पर उसका पुनल-जीवन करनेवाले, उसका फिर से पता लगानेवाले, बहुत करके पैदा हुआ ही करते हैं। ऐसे पुनरुज्जीवन के समय, समाज और देश की दशा को कुछ अधिक अनुकूल पाकर, सच बात, या सच सम्मति, निर्मूला होने से बच जाती है । इस तरह कुछ दिनों में वह इतनी प्रबल हो उठती है कि उसके विरोधी उसका लोप करने के लिए चाहे जितना सिर उठावें तथापि वे उसका कुछ भी नहीं कर सकते । उसका प्रचार हो ही जाता है।