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दूसरा अध्याय।

 कामकाज में विघ्न आ जाता। उसने समझा कि मैं अनुष्य-जाति का हूं। इस लिए मेरा यह धर्म है कि मैं मनुष्य-समुदाय में मेल बना रक्खू; सबको एक शृङ्खला में बांधे रहूं; अलग अलग टुकड़े टुकड़े न होने दूं। उसकी समझ में यह बात न आई कि यदि समाज के पुराने बन्धन तोड़ दिये जायगे तो सारे समाज को संयुक्त, अर्थात् शृङ्खला-बद्ध, करने के लिए नये बन्धन फिर किस तरह तैयार होंगे। क्रिश्चियन धर्म का उद्देश पुराने वन्धनों को तोड़ देने का था; यह बात साफ जाहिर थी; छिपी हुई न थी। इससे मार्कल आरेलियस ने यह समझा कि इस नये धर्म को स्वीकार तो कर सकते नहीं; अतएव उसका उच्छेद करना ही उचित है। क्रिश्चियन धर्म उसे सच्चा और ईश्वर-निम्मित नहीं मालूम हुआ। जो देवता, अर्थात् जो क्राइस्ट, सूली पर चढ़ाकर मार डाला गया उसके आश्चर्यकारक चरित पर उसे विश्वास नहीं आया। उसके ध्यान में यह बात भी नहीं आई कि जिस क्रिश्चियन धर्म की दीवार एक बहुत ही अच्छे आधार पर खड़ी की गई है, जिस पर उसे जरा भी विश्वास नहीं है, और जिसने अनेक विनों का उल्लंघन करके भी अपने उद्देश को पूरा किया है, वह संसार का पुनरुज्जीवन करने में समर्थ या लाधनीभूत होगा। इसीसे उस अत्यन्त कोमल स्वभाव और अत्यंत उदार तत्वज्ञानी राजा ने, अपना परम कर्तव्य समझकर, क्रिश्चियन धर्म के उच्छेद किये जाने का हुक्म दिया। मैं समझता हूं कि संसार भर के इतिहास में यह घटना सबले अधिक हृदयद्रावक है। इस बात को याद करके लख्त रंज होता है कि जो क्रिश्चियन धर्म मान्स्टन्टाइन बादशाह के समय में जारी हुआ वह यदि मार्कर आरेलियस के उदार राज्यशासन में जारी हो जाता तो उसकी वर्तसान अवस्था और ही तरह की हो गई होती-उसमें आकाश-पाताल का अन्तर हो गया होता। परन्तु, जितने प्रमाण इस बात के दिये जा सकते हैं कि क्रिश्चियन धर्म के विरुद्ध उपदेश देनेवालों को सजा देना इस समय उचित है, उतने ही प्रमाण मार्कस नारेलियस के समय में, रोम के प्रच. लित धर्म के निन्दक ब्रिश्चियन धर्म के प्रचारकों को सजा देने के अनुकूल भी दिये जा सकते थे। इस बात को कबूल न करना झूठ बोलना है; और, साथ ही उसके, मार्कस आरेलियस पर अन्याय भी करना है। ऐसा एक भी क्रिश्चियन नहीं है जिले यह विश्वास न हो कि नास्तिक धर्म झूठा धर्म है और वह समाज को वियुक्त कर देता है-उससे समाज को हानि पहुंचती