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स्वाधीनता।


किया । यही नहीं, किन्तु स्टोईक । सम्प्रदाय का होने पर भी उसका हृदय बहुत ही कोमल था । यह बात बड़े आश्चर्य की है । इस बादशाह में कुछ दोप भी थे। पर वे दोष ऐसे थे जिनसे प्रजा के कल्याण से सम्बन्ध था । अर्थात् प्रजाको वह बहुत प्यार करता था । उसके अन्य ऐसे हैं जिनमें नीति-मत्ता और सदाचरणशीलता पर बहुत ही अधिक जोर दिया गया है। इस विषय में, पुराने ग्रन्थों में, उसके ग्रन्थों का नम्बर सबसे ऊंचा है। क्राइस्ट ने जो उपदेश दिये हैं उनमें और सार्कस आरेलियस के ग्रन्थों में बिलकुल ही भेद नहीं है; और यदि है भी तो इतना कम है कि वह ध्यान में नहीं आता । आज तक जितने क्रिश्चियन बादशाह हुए हैं उन सबकी अपेक्षा यह बादशाह क्रिश्चियन कहलाने के अधिक योग्य था। हां, सिर्फ नाम के लिए यह क्रिश्चियन न था । पर इस ऐसे महाधामिक बादशाह ने क्रिश्चियनों से द्रोह किया; उनको बेहद सताया; उनको वेहद तंग किया । उस समय तक मनुष्य-जाति ने जितना ज्ञानसम्पादन किया था उस ज्ञान के सबसे ऊंचे शिखर पर यद्यपि वह पहुंच गया था, यद्यपि उसकी बुद्धिः अतिशय उदार और अतिशय अनियंत्रित थी; यद्यपि उसे किसी तरह का प्रतिबन्ध न था; यद्यपि वह इतना सदाचारी था कि अपने नीति-ग्रन्थों में उसने क्राइस्ट की नीति का सर्वथा अनुकरण किया था-उसे उसने आदर्श माना था; तथापि उसके ध्यान में यह बात नहीं आई कि जिन सांसारिक विपयों का उसे इतना गहरा ज्ञान था उनको क्रिश्चियन धर्म से फायदा ही होगा, नुकसान नहीं । उसको यह मालूम था कि समाज की वर्तमान दशा बहुत ही बुरी है-बहुत ही शोचनीय है । तिस पर भी उसने देखा, अथवा देखने का उसे आभास हुआ, कि समाज के कामकाज जो शृङ्खला-बद्ध चले जा रहे हैं और समाज की हालत पहले से जो बुरी नहीं हो गई, उसका एक मात्र कारण पूज्य माने गये देवताओं पर मनुष्यों की श्रद्धा और भक्ति है । अर्थात् यदि आदमी देवताओं पर भक्ति और श्रद्धा न रखते तो समाज, प्रजा या सब साधारण आदमियों की हालत खराब हो जाती और उनके


। स्टोईक सम्प्रदायवालों का सिद्धान्त यह है कि विषय-सुखों का त्याग करके मनुष्य को बहुत संयमपूर्वक रहना चाहिए । इस सम्प्रदाय का चलानेवाला जीनो नामक एक ग्रीक विद्वान् हो गया है ।