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दूसरा अध्याय।


कि उपयोगिता-तत्व के आधार पर जगन्मान्य तत्त्वज्ञानी अरिस्टाटल ने जो सिद्धान्त स्थिर किये उनका भी प्रेरक साक्रेटिस ही था। नीतिशास्त्र के तथा और जितने दर्शनशास्त्र हैं उनके भी, उत्पादक या आचार्य प्लेटो और अरिस्टाटल ही हैं। परन्तु साक्रेटिस को उनके गुरुस्थान में समझना चाहिए। दो हजार वर्ष बीत जाने पर भी जिसकी विमल कीर्ति अब तक बरावर बढ़ती ही जाती है; उसे छोड़कर बाकी के और जिन सब विद्वानों के कारण उसकी जन्मभूमि एथन्स का इतना नाम हुआ उन सबके कीर्ति-समूह से भी जिसकी कीर्ति अधिक उज्ज्वल हुआ चाहती है। उसके बाद होनेवाले सभी प्रसिद्ध तत्त्वज्ञानियों का जो गुरु माना जाता है उसी साक्रेटिस पर, उसी विश्ववंद्य साधुपर, उसी पवित्रान्तःकरण पुरुप पर, उसीके देश-भाइयों ने दुर्नीति और अधार्मिकता का इलजाम लगाया; और उसे कचहरी में घसीटकर न्यायाधीश के हुक्म से उसे प्राणान्त दण्ड दिलाकर उन्होंने कल की! साक्रेटिस की अधार्मिकता यह थी कि देश भर जिन देवताओं को पूज्य समझता था उन पर उसका विश्वास न था। उस पर जिस आदमी ने मुकद्दमा चलाया था उसका कहना तो यह था साक्रेटिस का विश्वास किसी देवता पर नहीं है। यही साक्रेटिस की अधार्मिकता हुई! उसकी दुर्नीति यह थी कि, लोगों की राय में, उसने अपने सिद्धान्त और उपदेशोंसे लड़कों के खयालात को बिगाड़ दिया था। लाक्रेटिस पर कचहरी में मुकद्दमा दायर होने पर जब उसका विचार हुआ तब न्यायाधीश ने उस पर लगाये गये इलजामों के लिए उसे सचमुच ही दोषी पाया-लोगों का विश्वास ऐसा ही है। अतएव, उस समय तक के प्रायः सभी मनुष्यों में मनुष्यजाति की कृतज्ञता का जो सबसे अधिक पात्र था—अर्थात् सारी मनुष्य-जाति जिसकी सबसे जियादह अहसानमन्द थी-उसी महापुरुप, उसी महात्मा, उसी साधु शिरोमणि को एक साधारण अपराधी की तरह--एक मामूली सुलजिम की तरह-मार डाले जाने का न्यायाधीश ने हुक्म दिया।

न्यायालय में आज तक जितने विचार हुए हैं उनमें से साक्रेटिस को अपराधी ठहराने के विषय में जितना अन्याय हुआ है उतना और किसीके विषय में नहीं हुआ। और अन्यायों के उदाहरण इसके सामने कोई चीज नहीं। हां, एक उदाहरण और है जो कुछ कुछ इसकी बराबरी कर सकता है। उसे हुए अठारह सौ वर्ष से भी अधिक समय हुआ। यह उदाहरण