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स्वाधीनता।


बढ़ा चढ़ा है। तो भी दुनिया भर के आदमियों का मुँह बन्द कर देना उसके लिए जैसे न्याय-संगत न होगा वैसे ही उस अकेले आदमी का मुँह बन्द कर देना दुनिया भर के आदमियों के लिए भी न्याय-संगत न होगा। राय किसी एक आदमी की निज की चीज नहीं। वह कोई ऐसा पदार्थ नहीं जिससे सिर्फ मालिक ही का फायदा हो; जो सिर्फ मालिक ही के काम की हो; जिसकी कीमत दूसरों की दृष्टि में कुछ भी न हो। राय ऐसी चीज नहीं कि आदमी को उसके अनुसार बर्ताव न करने देने से सिर्फ उसीका अहित हो सिर्फ उसीको नुकसान पहुँचे। नहीं, राय एक ऐसी बहुमूल्य वस्तु है, राय 'एक ऐसी कीमती चीज है, कि उसका प्रतिबन्ध करना, अर्थात् सर्व-साधारण ‘पर उसके विदित होने के मार्ग को बन्द करना, मानों मनुष्य-जाति के सर्वस्व को लूट लेना है। किसीको अपनी राय न जाहिर करने देने से जो हानि होने की संभावना रहती है वह बड़ी ही विलक्षण है। इस प्रकार के प्रतिबन्ध से सिर्फ वर्तमान समय के ही आदमियों को हानि नहीं पहुँच सकती; किन्तु होनेवाली संतति को भी हानि पहुँचने का डर रहता है। फिर यह भी नहीं कि जो लोग एक राय के हैं उन्हींको हानि पहुँच सकती हो; नहीं, जिन लोगों की राय भिन्न है उन्हींकी सबसे अधिक हानि होती है। क्योंकि, यदि राय सही है, यदि मत सच्चा है, तो झूठे को छोड़कर सच्चे मत को स्वीकार करने का मौका जाता रहता है। और यदि मत झूठा है, यदि राय गलत है, तो वादविवाद में झूठे और सच्चे का मुठभेड़ होकर, सच्चे की जीत होने से, उसके विषय में चित्त पर जो पहले से अधिक असर होता है, और उसकी पहचान जो पहले से अधिक स्पष्ट हो जाती है, उस लाभ से हाथ धोना पड़ता है। इस लाभ को कम न समझना चाहिए। कोई सम्मति-कोई राय-यदि प्रकट की जाने से रोक दी जाय तो उसके प्रति कूल पक्षवालों की भी हानि होती है; अनुकूल पक्षवालों की तो होती ही है।

यहाँ पर इन दोनों पक्षों के विषय में जुदा जुदा विचार करने की जरूरत है: क्योंकि हर एक के लिए जिन दलीलों से काम लेना है वे भी जुदा जुदा हैं। इस बात को हम कभी विश्वासपूर्वक नहीं कह सकते कि जिस राय-जिस सम्मति के प्रकाशन को रोकने की हम चेष्टा कर रहे हैं वह झूठी है। और यदि हमको इसका विश्वास भी हो जाय कि वह झूठी है तो भी उसे रोकने से हानि जरूर होती है। यह ऊपर कहा ही जा चुका है।