पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/३१३

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एकवार भी तूने अपनी माठी मुस्कान से छु दिया, तो हम धर्म-भ्रष्ट सामान्य सेवक सचमुच कृतकृत्य हो जायेंगे। नाथ ! अब तो तु यही आशीर्वाद दे, कि हमारा विश्व-धर्म तेरे पतित-पावन चरणों की अभय छाया शीव्रही अपने भवनत मस्तक पर धारण करे। कह दे, वरद-श्रेष्ठ, एकवार

'एवमस्तु ।।'