पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/२८३

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अब अलग ही रखना। अव कभी फिर उस काल-कोठरी में न भेजना। मुझे तू सदा यहीं रख, क्योंकि यहाँ तू ही तू है, तुझे छोड़ यहाँ दुई की वू भी नहीं है। यही माँगता हूँ, कि जीवन के ये शेप दिन अब यहीं किसी तरह कट जायँ।