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स्वाधीनता ।

दौड़ पड़ते हैं। पर वे उसे जांचने की तकलीफ नहीं उठाते कि वह टीक है या नहीं। देखने में भिन्न, पर यथार्थ में, एक ही रास्ते से जानेवाले इन गवर्नमेण्ट के नौकरों को मानसिक और शारीरिक हास से बचाने और उन- की बुद्धि को तेज बनाये रखने, का साधन सिर्फ यह है कि उनके काम काज की खूब अच्छी समालोचना करके उन्हें ठिकाने पर लाने के लिए देश में महु- कमेशाही के बाहर स्वतंत्र स्वभाव के कुछ आदमी रहे। अतएव इस बात की बड़ी जरूरत है कि देश में ऐसे भी साधन रहें-ऐसे भी उद्योग, धंधे, कल, कारखाने इत्यादि खुले-जो गवर्नमेण्ट के मुहताज न हों। इससे क्या होगा कि जो लोग उनसे सम्बन्ध रक्खेंगे उनको बड़े बड़े कामों के गुण-दोप समझने का मौका मिलेगा और इनका तजरुबा भी बढ़ेगा। उन लोगों की बुद्धि में तेजी आएगी और वे गवर्नमेण्ट के अधिकारियों के काम की खूब अच्छी समालोचना कर सकेंगे। यदि किसी की यह इच्छा हो कि गवर्नमेण्ट के अधिकारी होशियार और लायक हों, नई नई उपयोगी बातों को निकाल सकें, और दूसरों की वतलाई हुई उन्नतिशील युक्तियों को मान भी लें; अथवा यदि कोई यह चाहे कि गवर्नमेण्ट के अधिकारियों और कर्मचारियों का महकमा सिर्फ पण्डितमानी या विद्यादाम्भिक आदमियों का समूह न वन जाय; तो उसे चाहिये कि जिन व्यवसायों को-जिन उद्योगों को करने से मनुष्य-जाति पर हूकूमत करने के योग्य गुण प्राप्त होते हैं उन सब को वह गवर्नमेण्ट के अधिकार में न जाने दे।

_आदमी की स्वतंत्रता और उन्नति को बहुत बड़ी बाधा पहुंचानेवाली अनेक आपदायें हैं-अनेक अनिष्ट हैं-अनेक विन्न हैं। परन्तु इन आपदाओं का आरम्भ कब होता है, यह एक प्रश्न है। और राजनीति से सम्बन्ध रखनेवाले जितने विशेष जटिल और मुशकिल प्रश्न हैं उन्हीं में से एक यह भी है। इसी प्रश्न को लोग दूसरी रीति से भी पूछ सकते हैं-अर्थात् अपने सुख के वाधक विनों को दूर करने के लिए समाज, अपने मुखिया मनुष्यों के समुदाय के रूप में, जो गवर्नमेण्ट ( अर्थात् राजसभा) नियत करता है उससे होनेवाले हित की अपेक्षा अनहित की मात्रा कव अधिक होने लगती है, इस प्रश्न का उत्तर देना मानो इस सिद्धान्तका प्रतिपादन करना है कि देश में जितने बुद्धिमान, सुशिक्षित और चतुर आदमी हों उनमें से मतलव से अधिक आदमियों को गवर्नमेण्ट के अधीन न होने देकर, उन सब की