लाभ है और किसी किसी के मत से नहीं है। जो लोग इस सूचना के प्रति कूल हैं उनकी दलीलों में सबसे अधिक मजवूत दलील यह है कि गवर्नमेंट के नौकरों को अच्छी तनख्वाह नहीं मिलती और उनके पद, अधिकार या जगह का माहात्म्य भी अधिक नहीं होता। इससे अत्यधिक गुणी, विद्वान् और बुद्धिमान लोग प्रतियोगिता की परीक्षा में शामिल न होंगे। किली कम्पनी में नौकरी कर लेना अथवा खुद ही कोई व्यापार या व्यवसाय करना उनके लिए अधिक लाभदायक होगा । अतएव वे गवर्नमेंट की नौकरी की क्यों परवा करेंगे ? जो लोग प्रतियोगिता की परीक्षा के प्रतिकूल हैं उनके मुख्य आक्षेप के उत्तर में यदि अनुकूल पक्षवाले यह दलील पेश करते तो कोई आश्चर्य की बात न थी। परन्तु आश्चर्य की बात इसलिए है कि प्रतिकूल पक्षवाले ऐसा कहते हैं। क्योंकि प्रतिकूल पक्षवालों की राय में चढ़ा-ऊपरी की परीक्षा से जो वात न होगी उसीके होने की अधिक सम्भावना है। जिस कल्पना.को काम में लाने से देश की सारी बुद्धिमत्ता, सब कहीं से खिंच कर गवर्नमेंट के अधीन हो सकती हो उसे सुन कर दुःख होना चाहिए। यदि सभी बुद्धिमान आदमी लालच में आकर गवर्नमेंट की सेवा करने लगेंगे तो बात बहुत अनर्थकारक होगी । समाजके जिन कामों में सुव्यवस्था, दूरदर्शी- पन, एका और गम्भीर विचारों की जरूरत होती है वे यदि गवर्नमेंट के हाथ में चले गये, और यदि प्रायः सभी तीन बुद्धि के आदमी गवर्नमेंट की नौकरी करने लगे तो, दो चार तत्त्वज्ञानियों को छोड़ कर, देश के सारे शिक्षासम्पन्न और विद्वान् आदमियों को, हर बात के लिए, उसी महकमे का मुँह ताकना पड़ेगा । जो कुछ वह कहेगा वही उन्हें करना पड़ेगा, और जो लोग चालाक और महत्त्वाकांक्षी होंगे उनको भी अपनी उन्नति के लिए-. अपने स्वार्थ-साधन के लिए-उसीका आश्रय लेना पड़ेगा। इस सर्व-शक्ति- सम्पन्न जन-समूह या महकमे से भरती होना, और, होने के बाद धीरे धीरे . अपनी तरही करना ही सब लोगों की महत्त्वाकांक्षा की चरम सीमा हो जायगी । यदि इस तरह का कोई महकमा सचमुच ही बन जाय-यदि इस तरह की कोई व्यवस्था सचमुच ही हो जाय-तो और लोगों को किसी भी महत्त्वपूर्ण विषय में तजुरबा हासिल करने का मौका ही न मिलेगा और इस जन-समूह के कार्यकर्ताओं के कामों की आलोचना करने, और प्रतिबन्ध- पूर्वक उसे एक सुनासिब हद के भीतर रखने, की उनमें शक्ति ही न रह
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स्वाधीनता ।