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स्वाधीनता ।

भी नहीं है। अतएव इस विषय में मैं और अधिक लिखने की जरूरत नहीं समझता।

दूसरा आक्षेप इस लेख से अधिक सम्बन्ध रखता है। इस कारण में उस पर विचार करता हूं । यद्यपि यह बात बहुत सम्भव है कि किसी विशेप काम को गवर्नमेंट के अधिकारी जितनी उत्तमता से कर सकेंगे उतनी उत्तमता से और लोग, मामूली तौर पर, न कर सकेंगे । परन्तु सब लोगों को मानसिक शिक्षा देने के इरादे से उन्हींसे ऐसे काम कराने की अधिक जरूरत है। क्योंकि यदि गवनर्नमेंट के अधिकारी ही इस तरह के काम करते रहेंगे तो औरों को उन्हें करने का मौका ही न मिलेगा। अतएव उनके मानसिक शिक्षण में बाधा आवगी। यदि ऐसे काम उनको दिये जायंगे तो उनकी कार्यकारिणी शक्ति प्रबल हो उटगी; वे उन्हें करनाः सीख जायेंगे और उनके विषय में उनका ज्ञान भी बड़ जायगा । राजकीयः बातों से सम्बन्ध रखनेवाले मुकदमों को छोड़ कर और मुकदमों में पंचों से सहायता लेना, लोकल बोर्डों और म्यूनिसिपालिटियों को यथासम्भव स्वाधी- नता-पूर्वक काम करने देना, और उदारता और उद्योग के बड़े काम करने के इरादे से सब लोगों को कम्पनियां खड़ी करने देना इत्यादि बातें इसी सिद्धान्त पर अवलम्बित हैं। अर्थात् सब लोगों को मानसिक शिक्षा देने ही के लिए ये बातें की जाती हैं। इन बातों का सम्बन्ध स्वाधीनता से नहीं है, किन्तु सामाजिक सुधार या उन्नति से है । और, यदि, स्वधीनता से सम्ब- न्ध भी है तो बहुत दूर का है। जातीय शिक्षा का अंश समझ कर इन बातों का विवेचन इस लेख का उद्देश नहीं है; वह किसी और ही मौके पर शोभा देगा। तथापि यहां पर भी इस विषय में मैं अपने विचार, थोड़े में, प्रकट किये देता हूं। मेरी राय यह है कि इस तरह की शिक्षा देना मानो स्वाधी- न देश के निवासियों को राजकीय विषयों की शिक्षा का रास्ता बतलाना है। आदमी का स्वभाव है कि वह अपने कुटुम्बवालों के ही स्वार्थ की तरफ अधिक नजर रखता है। अतएव राजकीय शिक्षा से उसकी यह आद. त, थोड़ी बहुत, छूट जाती है; सार्वजनिक हित की बातों की तरफ उसका ध्यान खिंच जाता है; और उनकी व्यवस्था करने का उसे सबक सा मिलता है। इतना ही नहीं; किन्तु सार्वजनिक अथवा अर्द्ध-सार्वजनिक कारणों का मेरणा से काम करने की उसे आदत पड़ जाती है और जिन बातों को ध्यान,