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पांचवां अध्याय।
प्रयोग ।

जिन सिद्धान्तों का वर्णन मैंने यहां तक किया वे सांसारिक व्यवहारों के आधार हैं। इन्हीं सिद्धान्तों को दूर तक आधार मान कर व्यवहार की बातों का विवेचन करना चाहिए । इस बात को ध्यान में रखने से ही राजनीति और समाजनीति की सब शाखाओं में इन सिद्धान्तों की योजना की जा सकेगी । ऐसा न करने से सारी मेहनत बरबाद जायगी। उससे कोई फायदा न होगा । व्यवहार से सम्बन्ध रखनेवाली बातों की जो मैं थोड़ी सी आलोचना करना चाहता हूं वह सिर्फ दृष्टान्त के लिए है । मैं सिर्फ इस बात को स्पष्ट करने के लिए कुछ उदाहरण देना चाहता हूं कि किस तरह मेरे निश्चय किये हुए सिद्धान्तों की योजना व्यावहारिक विषयों में होनी चाहिए । मेरा मतलब अपने सिद्धान्तों की सविस्तर योजना करके बतलाने का नहीं है। मैं अपने सिद्धान्तों के सभी प्रयोग उदाहरणपूर्वक नहीं बतलाना चाहता । मैंने दो सिद्धान्तों या तत्त्वों का विवेचन किया है। वही इस पुस्तक के सारभूत हैं। उनका मतलब और उनकी व्याप्ति अर्थात् सीमा, को अच्छी तरह लोगों के ध्यान में लाने के लिए, मैं नमूने के तौर पर, प्रयोग के कुछ उदाहरण देता हूं। यह न समझिए कि मैं सब तरह के प्रयोगों की-सब प्रकार की योजनाओं की विवेचना करने जाता हूं। प्रयोग के जो नसूने मुझे बतलाने हैं उनसे यह बात ध्यान में आजायगी कि किस सिद्धान्त का कहां प्रयोग करना चाहिए और जहां यह संशय उपस्थित हो कि किसी एक सिद्धान्त से काम लिया जाय या दूसरे से वहां किस तरह निश्चय करना चाहिए।