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चौथा अध्याय ।

होगी। हाथ से काम करनेवाले आदमियों में इस तरह के खयालात अभी से से खूब फैल रहे हैं; और जो लोग कारीगर हैं; अर्थात् जो इन्हीं का ऐसा व्यवसाय करते हैं, उन पर ऐसे खयालात ने जुल्म भी करना शुरू कर दिया है। यह बा सब को मालूम है कि लव तरह के व्यवसायों में आधिक हिस्सा ऐसे ही कारीगरों, अर्थात् हाथ से काम करनेवालों, का है जो अच्छा काम करना नहीं जानते। पर इन लोगों का सचमुच ही यह खयाल है कि इन को भी उतनी ही मजदूरी मिलनी चाहिए जितनी कि अच्छे कारीगरों को मिलती है। इन लोगों के खयाल ने यहां तक दौर मारी है कि अलग अलग छोटे छोटे काम करके, या और किसी तरह से अधिक होशियारी या मेहनत के द्वारा यदि कोई कारीगर औरों से अधिक रुपया पैदा करने लगे तो उसे पैदा करने से रोकना चाहिए । वात यहीं तक नहीं रही; इससे भी आगे बढ़ी है। अधिक अच्छा काम करने के बदले में यदि कोई आदमी किसी. कारीगर को अधिक मजदूरी देने लगा, या कोई अच्छा कारीगर उसे लेने लगा, तो ऐसा करने से रोकने के लिए, अपशब्दरूपी पुलिस से काम लिया जाता है। यदि इससे भी मतलब नहीं निकलता है तो कभी कभी मारपीट तक की नौबत आती है। यदि यह मान लिया जाय कि सब लोगों की खानगी बातों में भी दस्तंदाजी करने का अधिकार समाज को है तो, मैं नहीं जानता, ये गाली देनेवाले और मारपीट करनेवाले कारीगर किस तरह अप- राधी ठहराये जा सकते हैं ? जो अधिकार सारा समाज सब लोगों पर, सामान्य रीति से, रख सकता है उसी अधिकार को कोई विशेष प्रकार का समाज यदि अपने वर्ग के किसी अंश पर रखने की कोशिश करे तो वह दोषी क्यों पर हो सकता है?

पर इस तरह के कल्पित उदाहरण देने की जरूरत ही नहीं है, इस समय, हम लोग अपनी आंखों से देख रहे हैं कि लोगों की खानगी बातों पे सम्बन्ध रखनेवाली रवाधीनता यहां तक छीनी जा रही है। यही नहीं, किन्तु, धीरे धीरे, इससे भी अधिक जुल्म होने का डर है। आज कल इस तरह की राय कायम होने का ढंग देख पड़ रहा है कि आदमियों के बर्ताव में समाज को जो बाते बुरी नारन हों उनको कानून के द्वारा बन्द कर देने ती भर का मसतियार उसे न होना चाहिए, किन्तु उन बुरी बातों को ढूढ़ निकालने के लिए जिन बातों को समाज खुद भी निर्दोष समझता है, उनको