इस अनिष्ट को कल्पना न समझिए। यह न समझिए कि यह हानिकारक रीति कहने ही भर को है। कोई शायद मुझ से यह उम्मेद करे कि मैं उदाहरणपूर्वक इस बात को सिद्ध करूं कि आज कल भी इस देश में समाज ने अपनी ही पसन्द के अनुसार नैतिक नियम बनाये हैं । शायद लोग कहें कि पुराने जमाने में यह बात होती रही होगी; पर अब नहीं होती। और यदि आप समझते हैं कि अब भी होती है तो उदाहरण दीजिए । इसका जवाब यह है कि इस समय नीति के जो नियम जारी हैं उनके दोप दिख- लाने के इरादे से मैं यह लेख नहीं लिख रहा हूं। वह बहुत बड़ा विषय है। इस लेख के बीच, उदाहरण के रूप में, उसका विचार नहीं हो सकता। पर उदाहरणों की जरूरत है। इस में कोई सन्देह नहीं। क्योंकि उदाहरण देने से लोगों को यह बात अच्छी तरह मालूम हो जायगी कि जिस नियम को सिद्ध करने के लिए मैं इतना बखेड़ा कर रहा हूं वह बहुत बड़े व्यावहा. रिक महत्व का है। वह काल्पनिक नहीं है। यह नहीं कि लोगों को कल्पि. त बुराइयों से बचाने के बहाने मैं झूठ मूठ पाखंड रच रहा हूं। जिन बातों में अपनी इच्छा के अनुसार वर्ताव करने के लिए हर आदमी को बिना किसी विवाद के स्वाधीनता मिलनी चाहिए उन बातों को भी नीतिरूपी पुलिस की हद के भीतर कर देने की तरफ आज कल लोगों की प्रवृत्ति बहुत ही अधिक बढ़ रही है। यह वात, एक नहीं अनेक उदाहरण देकर सावित की जा सकती है।
_ अपना, पहला उदाहरण लीजिए। जिन लोगों के धार्मिक विचार दूसरी तरह के हैं, अर्थात् जो परधम्मी हैं, वे और लोगों से घृणा करते हैं। क्यों ? इस लिए कि और लोग उनके ऐसे धामिक व्यवहार विशेप करके उनके आहार-विहार से सम्बन्ध रखनेवाले नियमों का पालन, नहीं करते। बस, इसी कारण वे औरों से द्वेप करते हैं। एक छोटा सा दृष्टांत सुनिए। क्रिश्चियन लोग सुअर का मांस खाते हैं, पर मुसलमान सुअर का मांस खाना बहुत ही बुरा समझते हैं। अतएव, इस कारण, मुसलमान लोग क्रिश्चियनों से जितना ट्रेप करते हैं उतना उनके और किसी धाम्मिक मत या आचार-विचार के कारण नहीं करते । सुअर खाकर भूख शान्त करने की रीति पर मुसलमानों को जितनी घृणा है उतनी घृणा जिशियन लोगों की और किसी दात पर नहीं है। सुअर खाना मुसल.