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चौथा अध्याय

आदमी को -हर व्यक्ति को -अपने निज के काम काज से सम्बन्ध रखने- वाली बातों पर पूरा अधिकार है। इस अधिकार को भी उसीके भीतर समझना चाहिए । पर, हां, यह याद रहे कि उससे दूसरे को किसी तरह की हानि न पहुंचे। उदाहरण के लिए किसी बुरे आदमी की सङ्गति करने के लिए कोई मजबूर नहीं किया जा सकता । उलटा उससे दूर रहने का सबको पूरा अधिकार है । पर उसके बुरेपन को-उसले दूर रहने के कारण को -उसके सामने जाहिर करने का किसी को अधिकार नहीं; क्योंकि इससे उसे दुःख होगा । सक्को इस बात का हक है-सबको इस बात का अधि- कार है -कि जिनकी सङ्गति उन्हें सबसे अधिक पसन्द हो उन्हींके साथ वे बैठे उठे । यदि हमको यह मालूम हो जाय कि किसीके व्यवहार या भाषण का परिणाम, उसके साथ रहनेवालों पर, पुरा होता है तो हमको अधिकार है-अधिकार ही नहीं, किन्तु हमारा कर्तव्य भी है--कि हम उन लोगों को इस बातसे सावधान कर दें। और लोगों के द्वारा किये गये किसीके हित के कामों के सिवा, बाकी जितने अच्छे अच्छे काम हैं उन सबमें, उसे छोड़कर, औरों का साथ देने के लिए हमको पूरा अधिकार है । अर्थात् हमारा कर्तव्य है कि ऐसी हालत में हम उस अकेले आदमी की परवा न करके औरों के हित की वृद्धि करें। जिन दोषों से-जिन दुगुणों से-और किसीका सम्ब- न्ध है, अर्थात् जिनसे सिर्फ अपना ही सम्बन्ध है, उनके लिए भी ऊपर कहे गये अनेक प्रकार के दण्ड, अप्रत्यक्ष रीति से किसी किसी को सहन करने परते हैं। परन्तु इस तरह के दण्ड भोगनेवाले को यह न समझना चाहिए कि किसी ने उसे दण्ड देने ही के इरादे से ऐसा किया है। उसे यह सम. सना पाहिए कि उसमें जो दुर्गुण हैं उनके आप ही आप पैदा होनेवाले, ये दररूपी परिणाम हैं। जो आदमी सोच विचाकर काम नहीं करता, जो दृधाभिमानी और हटी है, जो अपने आचरण को परिमित नहीं रखता, जो हानिकारक दिपयोपभोग से अपने को नहीं बचाता और नैतिक सुखों की परवा न करके शारीरिक सुख को ही अपना सर्वस्व समझता है, उसे इस दात के सुनने को हमेशा तैयार रहना चाहिए कि दूसरों की निगाह में मैं उत्तराभाई और दूसरे लोग मेरे विषय में जो राय रखते हैं व शत कम अनुकूर है। इन बातों को बिना किसी शिकायत के उसे सुनमा दाहिए । गौर शिकायत के लिए उसे जगह भी, हां