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स्वाधीनता।


निन्दा अन्याय नहीं; वह सब तरह से न्याय-सङ्गत है। किसी किसी आदमी के बर्ताव में एक तरह की मूर्खता पाई जाती है। इन दुर्गुणों के कारण यद्यपि किसी को सजा देना उचित नहीं है; तथापि यह जरूर है कि उसे लोग पसन्द न करेंगे; कोई कोई तो उससे घृणा तक करने लगेंगे ; अथवा उसे तिरस्कार की दृष्टि से देखेंगे। यह स्वाभाविक बात है। यह होनी ही चाहिए ऐसे दुर्गुणों को देख कर यदि किसी के मन में अरुचि, घृणा और तिरस्कार न पैदा हो तो समझना चाहिए कि उसमें सुरुचि, प्रीति और आदर नामक सद्गुणों की मात्रा कुछ कम है। अर्थात् जो आदमी किसी अरोचक, घृणित या तिरस्करणीय चीज को देखकर भी उसे वैसी नहीं समझता उसके विषय में यह कहना चाहिए कि उसे रोचकता, प्रीति और सम्मान का अच्छी तरह ज्ञान ही नहीं। क्योंकि यदि वह इन विरोधी गुणों को पूरे तौर पर जानता तो इन्हें वह काम में भी लाता। एक आध आदमी के बुरे बर्ताव से यद्यपि औरोंको विशेष हानि नहीं पहुंचती तथापि उससे यह जरूर सूचित होता है कि वह आदमी या तो मूर्ख है या नीच। इस तरह के निश्चय का कारण उसका बर्ताव ही होता है। वह वर्ताव मजबूर करता है कि लोग इस तरह का निश्चय करें। परन्तु जिसके विषय में लोग ऐसा निश्चय करते हैं वह इस बात को पसन्द नहीं करता। वह नहीं चाहता कि लोग उसे मूर्ख या नीच कहें। पर वह चाहे या न चाहे इस विषय की सूचना उसे पहले ही से जरूर दे देनी चाहिए―उसे पहले ही से जरूर सावधान कर देना चाहिए। किसी ऐसे काम को; जिसका परिणाम बुरा हो, करते देख किसीको रोक देने से जैसे उसका हित होता है वैसे ही मूर्खता या नीचता के बोधक बर्ताव की सूचना दे देने से भी हित होता है। आज कल शिष्टता और सभ्यताकी हद यहां तक बढ़ गई है कि इस तरह की सूचनाके द्वारा लोगों का बहुत कम हित किया जाता है। क्योंकि इस तरह की सूचना देने में लोग सङ्कोच करते हैं। इसका कारण यह है कि ऐसा करने से लोग असभ्य, अशिष्ट और घमण्डी समझे जाते हैं। ऐसा न हो तो अच्छा। शालीनता और शिष्टता की जैसी कल्पना इस समय प्रचलित है वह बदल जाय तो इस तरह की सूचना से लोगों का अधिक कल्याण हो। यदि एक आदमी के विषयमें दुसरे आदमी की राय खराब हो तो उस दूसरे आदमी को अपनी राय के अनुसार, जिस तरह वह चाहे, बर्ताव करने का उसे अधिकार भी तो है। हर