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स्वाधीनता ।

हो गया है । एक बात और भी है। आज कल लोगों ने नैतिक उन्नति करने के लिए कमर कसी है । इस विषय की आज कल खूब चर्चा हो रही है। इसका फल भी प्रत्यक्ष है । सब लोगों का व्यवहार और बर्ताव एकसा करने और सब तरह की जियादती को रोकने में कामयाबी भी बहुत कुछ हुई है । आज कल लोगों के मन में यह बात जम गई है कि सब आदमियों से स्नेह रखना चाहिए । जितने मनुष्य हैं उन सब की नीति और बुद्धि की उन्नति के काम को छोड़ कर इस समय आदमियों के लिए और कोई काम ही नहीं रहगया । समय के इस झुकाव के अनुसार-काल की इस महिमा के अनुसार--सब के बर्ताव के लिए एकसे नियम बनाने की तरफ लोगों की प्रवृत्ति पहले की अपेक्षा अधिक हो चली है। और, ऐसे नियम-रूपी नमूने के अनुसार सब लोगों से बर्ताव कराने की कोशिश भी हो रही है। वह नमूना-चाहे वह साफ साफ हो. चाहे ध्वनि से सूचित होता हो-यह है कि किसी चीज के पानेके लिए प्रबल इच्छा न रखनी चाहिए । उत्तम स्वभाव वह कहलाता है जिसकी उत्तमता का कोई चिह्न ही न हो-जिस में कोई विशेपता ही न हो। स्वभाव के वे सब भाग जो अधिक बाहर निकले हुए, अर्थात् अधिक उन्नत, देख पड़ते हों; और जिनके कारण किसी का स्वभाव दूसरे आदमियों के स्वभाव से जुदा तरह का जान पड़ता हो, उन सबकों, चीन की स्त्रियों के पैरों की तरह, खूब दबाकर कुरूप कर डालने ही को लोग, आज कल, स्वभाव की उत्तमत्ता समझते हैं। उसी को वे नमूनेदार स्वभाव कहते हैं। उसीकी नकला करने के लिए वे सब लोगों को लाचार करना चाहते हैं।

- यह एक साधारण नियम है कि जिस नमूने की नकल उतारना है उसका आधा हिस्सा यदि छोड़ दिया जाय तो बाकी बचे हुए की भी नकल अच्छी तरह नहीं उतारी जा सकती। आज कला लोग जिस नीति का अवलम्बन कर रहे हैं उसका भी नमूना इसी तरह का है । खुब प्रबल विवेचना से प्रवल उत्साहों का नियमन होना चाहिए; और, अन्तःकरण को गवाह बनाने के बाद, उत्पन्न हुई इच्छा से प्रवल मनोविकारों को काबू में रखना चाहिए । पर ऐसा नहीं होता। इसका फल यह हुआ है कि दुर्वल मनोविकार और दुर्बल ही उत्साहवाले आदमी अब पैदा होते हैं । ऐसों की कमजोर मनो. वृत्तियों को बाहर से प्रतिबन्ध में रखने अर्थात् बतलाये गये नमूने की उनमे