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तीसरा अध्याय। '१३१


पर जब जब उनको अपने समुदाय की तरफ से बोलने या उससे कुछ कहने की जरूरत पड़ती है तब तब वे अखबारों की शरण लेते हैं। ये बातें मैं शिकायत के तौर पर नहीं कहता। मेरा यह मतलब नहीं कि इस तरह की काररवाई से अनिष्ट होने की सम्भावना है। और, न मैं यही कहता हूं कि इस समय विचार और विवेचना का इससे भी अच्छा और कोई तरीका है। आदमियों की मानसिकवृत्ति इस समय बहुत निकृष्ट अवस्था में है। अतएव, इस दशा में, साधारण रीति पर जो स्थिति इस समय है, उसकी अपेक्षा अधिक उत्तम स्थिति साध्य नहीं। परन्तु मध्यस-शक्ति की सत्ता मध्यम शक्तिकी ही सत्ता है। उसमें जो गुण-दोष हैं वे बने ही हुए हैं। आज तक जितनी राजसत्तायें हुई हैं―चाहे उनका सूत्र जन-समूह के हाथ में रहा हो चाहे सिर्फ प्रधान प्रधान आदमियों के हाथ में रहा हो―उनमें से प्रायः एक भी राजसत्ता, राजकीय कामों में, सद्गुणों में और मानसिक स्थिति में भी मध्यमावस्था से अधिक ऊपर नहीं गई और यदि जाना चाहती तो जा भी न सकती। जहां कहीं एक आध जगह किसी विपय में मध्यसावस्था से अधिक उन्नत अवस्था देख पड़ती है वहां उसका यह कारण है कि उस विशेष उन्नतिशाली विषय के सम्बन्ध में सत्ताधारी आदमियों ने अपने से अधिक बुद्धिवान्, तजरुबेकार और शिक्षित लोगों की सलाह या प्रेरणा से काम किया है। जितनी बातें हितकर, उदार या बुद्धिमानी की हैं उन सब की उत्पत्ति व्यक्ति-विशेष से ही होती है; अर्थात् व्यक्ति-विशेष ही पहले पहल उन्हें शुरू करते हैं और उन्हींको शुरू करना भी चाहिए। ऐसी बातों की उत्पत्ति बहुत करके एक ही व्यक्ति―एक ही आदमी―से होती है। व्यक्ति-विशेष की चलाई हुई बातों के अनुसार बर्ताव करने की योग्यता रखना ही औसत दरजे के आदमियों का भूपण है। उसीमें उनकी कीर्ति और भलाई है। लाभदायक और बुद्धिमानी की बातों को कबूल कर लेना और अच्छी तरह समझ बूझकर उनके अनुसार याद करना ही मामूली बुद्धि के आदमियों को उचित है । दुनिया भर की सत्ता को जबरदस्ती छीन कर मनुष्य-मात्र को अपना आज्ञाकारी बनानेवाले प्रवल और अद्भुत प्रतिभाशाली आदमियों की लोग खूब तारीफ करते हैं; उनकी वे पूजा करने लगते हैं। पर यहां इस प्रकार की "वीर-पूजा " से मेरा मतलद नहीं है। मैं उसके खिलाफ हूं। मेरा मतलब यह है कि विलक्षण प्रतिभावाले आदमी को सिर्फ रास्ता बतला देने की