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तीसरा अध्याय।


बचाने के लिए-बलवान् आदमी से कठोर नियमों का पालन कराने से, उसकी वे मनोवृत्तियां और वे शक्तियां बढ़ती हैं जिनसे पदार्थ की सिद्धि होती है- जिनसे पर-हित की वृद्धि होती है । यह उन कामों की बात हुई जिनसे दूसरों का सम्बन्ध है । परन्तु जिन बातों से दूसरों का बिलकुल ही सम्बन्ध नहीं है उन्हें करने से किसी को सिर्फ इसलिए रोकना, कि वे दूसरों को पसन्द नहीं हैं, कदापि न्याय-संगत नहीं । इस तरह की रोक से कुछ लाभ नहीं होता । यदि कुछ होता भी है तो यह होता है कि जिसकी वासना, या इच्छा, रोकी जाती है वह उस रुकावट का सुकाबला करके उसे तोड़ने की कोशिश करता है । इससे उसके स्वभाव की प्रबलता यदि कुछ बढ़ जाय तो बढ़ सकती है । और अधिक कुछ नहीं हो सकता । यदि उस एकावट से वह रुक जायगा-यदि उस बलात्कार, अर्थात् जबरदस्ती को वह सहन कर लेगा-तो उसका सारा स्वभाव ही पलट जायगा । उसमें मन्दता आ जायगी; उसकी तेजी जाती रहेगी । हर आदमी की प्रकृति को यथेच्छ उन्नत होने के लिए, हर आदमी को अपनी तरक्की करने के लिए, इस बात की बहुत बड़ी जरूरत है कि जितने आदमी हैं सब अपनी अपनी इच्छा के अनुसार मनमाना व्यवहार करें । अतएव यथेच्छ व्यवहार करने के लिए सब को सुनासिब तौर पर मौका देना चाहिये । जिस युग, अर्थात् पीढ़ी से इस तरह का सुभीता जितना ही अधिक था, उतना ही अधिक परिणाम में वह युग लाभदायक हुआ है । इस समय उसने उतनी ही अधिक प्रसिद्धि भी पाई है । जहाँ अनिर्बन्ध राज्य है; जहां प्रजा का सर्वस्व राजा ही के हाथ में है; जहाँ मजा कुछ नहीं, राजा ही सब कुछ है; यहां पर ऐसे राज्य-शासन भी तब तक बहुत बुरे अनर्थ नहीं होते जब तक व्यक्ति विशेषत्व सजीव बना रहता है, अर्थात् जब तक हर आदमी के उचित मनोविकारों की वृद्धि नहीं रोकी जाती । जिस सत्ता से व्यक्ति-विशेषता पिस जाती है उसी का नारा अनिन्ध राज्य है । ऐसी सत्ता को चाहे कोई जिस नाम से पुकारे; और चाहे उसका उद्देश ईश्वर की इच्छा के अनुसार लोगों से बलपूर्वक काम कराना हो, चाहे उसले आदमी के हुकानों की तालीम करानी हो; उसकी अनिन्धता कहीं जाने की नहीं । बाढ़, वृद्धि, या उसति ही का नाम‌ यनिता या व्यक्तिविशेषता है । दोनों एक ही चीज है । व्यक्ति विशेषताकी वरती होने ही से भादगी की बढ़ती होती है और हो सकती है । अर्थात्