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स्वाधीनता।

वह प्रतिकूल पक्ष का, उसके पक्ष या दल की तरफ नजर न रखकर सिर्फ उसके काम की तरफ नजर रखना चाहिए। जो मनुष्य अपने प्रतिपक्षियों को अच्छी तरह पहचानता है; जो उनकी बातों को शान्तिपूर्वक सुनता है; जो उनके कहने को सचाई के साथ बयान करता है; जो उनका अपमान करने के इरादे से किसी बात को बढ़कर नहीं कहता; और जो उनके अनुकूल, या अनुकूलसी मालूम होनेवाली, बातों को नहीं छिपाता, वह चाहे जिस पक्षका हो, उसका उचित आदर करना मनुष्य का कर्तव्य है। सार्वजनिक वाद-विवाद और विवेचना की यही सच्ची नीति है—यही सच्ची रीति है। यह सही है कि इस नीतिका लोग बहुधा उल्लंघन करते हैं। पर खुशीकी बात है, कि ऐसे भी बहुत आदमी हैं जो इसके अनुसार बर्ताव करते हैं; और ऐसे तो और भी अधिक हैं जो इसके अनुसार बर्ताव करने की अन्तःकरणपूर्वक चेष्टा करते हैं।