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नया वर्ष।

गंदी धनी भाफ से बचाकर बहुत कुछ निर्मल और उज्ज्वल बनाये रखती और मलिनता के कूड़े को अपने शरीर के पास ही जमने––ढेर होने––नहीं देती। और देशों में परस्पर की छीन-झपट और रगड़-झगड़ से जो काम-क्रोध आदि शत्रुओं का दावानल जल उठता है, वह, भारतवर्ष में शान्त रहता है––नहीं जलता।

भारतवर्ष के इस अकेले रहकर काम करने के व्रत को यदि हममें से हरएक ग्रहण करे तो इसमें कोई सन्देह नहीं कि इस बार का नया वर्ष आशीर्वाद की वर्षा और कल्याण के शस्य (अन्न) से परिपूर्ण होगा। हम लोग यदि दल बाँधने, रुपया जुटाने और सङ्कल्प को बड़ा बनाने की बहुत दिनों तक अपेक्षा न करके, जो जहाँ है वह वहीं––अपने गाँव में, महल्ले में, मैदान में, घर में––स्थिर शान्त चित्त से धैर्य के साथ, सन्तोष के साथ, पुण्यकार्य––मङ्गलकार्य का श्रीगणेश कर दें; आडम्बर के अभाव से खिन्न न होकर, दरिद्र आयोजन से सङ्कोच न कर, देशी भाव से लज्जित न होकर, झोपड़ी में रह कर, जमीन पर बैठकर, अँगौछा पहन कर सीधेसादे सहज भाव से काम करने में लग जायँ; धर्म के साथ कर्म को और कर्म के साथ शान्ति को जोड़े रहें; चातक पक्षी की तरह विदेशियों की करतालिध्वनि-वर्षा के लिए ऊपर की ओर गर्दन उटाये ताकते न रहें; तभी भारतवर्ष के भीतरी सच्चे बल को पाकर बलवान् बन सकेंगे। हमको याद रखना चाहिए कि हम बाहर से धक्के पा सकते हैं; बल नहीं पा सकते। अपने बल के सिवा दूसरे से बल नहीं मिल सकता। भारतवर्ष जिस जगह पर अपने बल से बलवान् है उसी स्थान को अगर हम ढूँढ लें और उस पर दखल भी कर लें, तो दम भर में हमारी सारी लज्जा दूर हो जायगी।

भारतवर्ष ने छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष, सभी को मर्यादा दी है। और, उस मर्यादा को उसने दुराकांक्षा के द्वारा नहीं पाया है। विदेशी लोग