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भारतवर्ष का इतिहास

स्पर चातुरी और प्रवञ्चनाकी चोटें चलने लगीं। उनका वर्णन भी भारत का इतिहास नहीं माना जा सकता। इसके बाद अँगरेजों का शासन शुरू होता है। वह पाँच पाँच वर्ष के हरएक लाटके शासन में बँटा हुआ शतरंज के समान विचित्र है। शतरंज में और उसमें अन्तर केवल इतना ही है कि शतरंज के खाने आधे काले और आधे सफेद होते हैं, पर इसमें सोलहों आने सफेद रंग है। उसमें हमारे शिक्षित बन्धु अपने पेटका अन्न औरों को देकर उसके बदले में सुशासन, सुविचार, सुशिक्षा आदि सब कुछ एक बड़े भारी 'ह्वाइट-वे-लेडला' कम्पनी के कारखाने से खरीद रहे हैं। शेष सभी दूकानें और बाजार बन्द हैं। इस कारखाने की सभी चीजें 'सु' हो सकती हैं; परन्तु इसके द्वारा प्रकाशित और प्रचारित भारतवर्ष का इतिहास हमारे किसी काम का नहीं।

सब देशों के इतिहास एक ही ढँग के होने चाहिए––यह कुसंस्कार है। इस कुसंस्कार को छोड़े बिना काम नहीं चल सकता। जो आदमी 'रथचाइल्ड' का जीवनचरित पढ़ चुका है वह ईसा की जीवनी पढ़ते समय ईसा के हिसाब-किताब का खाता और आफिस की डायरी तलब कर सकता है; और यदि ईसा की जीवनी में उनके हिसाब-किताब का खाता तथा डायरी वह न पावेगा तो उसे ईसा के प्रति अश्रद्धा होगी। वह कहेगा कि जिसके पास एक पैसे का भी सुभीता न था उसकी जीवनी कैसी? ठीक इसी तरह, भारतवर्ष के राष्ट्रीय दफ्तर से उसके राजाओं की वंशमाला और जय-पराजय के कागज-पत्र न पाकर जो लोग निराश हो जाते हैं और कहने लगते हैं कि "जहाँ राजनीति नहीं वहाँ इतिहास का क्या जिक्र?" वे सचमुच ही धान के खेत में बैंगन ढूँढने जाते हैं और यहाँ बैंगन न पाकर धान की गिनती अन्न में ही नहीं करते। सब