राज्य भोगता है और जिसे बाद में राज्य मिलने की उम्मीद होती है, उन दोनों को छोड़ कर उस राज्य के सब मनुष्य पराधीन होते हैं; और पराधीनता वास्तव में मनुष्य की बेइज्ज़ती है। अब ऊपर वाले उदाहरण से सोचो कि स्त्रियों की पराधीनता में और एकसत्ताक राज्य की पराधीनता में क्या अन्तर है। इस बात से यह मत ख़याल करना कि मैं अभी स्त्रियों की पराधीनता के योग्यायोग्य पर विचार किये डालता हूँ। इस स्थान पर मैं केवल इतना ही सिद्ध करना चाहता हूँ कि ऊपर दिखाये हुए पराधीनता के प्रकार बहुत ही कमज़ोर थे और वे अधिक समय तक टिकने वाले न थे-फिर भी आज तक टिके हुए हैं। अर्थात् अनियन्त्रित एकसत्ताक राज्यपद्धति के द्वारा केवल एक ही आदमी का लाभ होता है और इसे नष्ट कर डालने पर बाक़ी सब को लाभ पहुँचता है, किन्तु इतना होने पर भी एकसत्ताक राज्यपद्धति टिकी हुई है और इसका समर्थन करनेवालों की संख्या भी अल्प नहीं है। फिर जिस स्त्रियों की पराधीनता से प्रत्येक
पुरुष का कुछ न कुछ लाभ है, वह पराधीनता यदि बड़े लम्बे समय तक टिकी रहे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।
आदमी के मन की यह एक स्वाभाविक चाल है कि वह हुकूमत की डोर अपने हाथ में चाहता है। प्रत्येक मनुष्य अपने हाथ में कुछ अधिकार होने से अपने आप को बड़ा समझता है, और अधिकार पाने की हौंस प्रत्येक को होती