राज्यों को जीत कर ग़ुलाम बनाना और जीती हुई प्रजा पर अत्याचार करना इन में से किसी बात को भी प्रबल धार्मिक शक्ति न रोक सकी। इस घोर अशान्ति को रोकने की इच्छा भी लोगों की नहीं मालूम होती, किन्तु जब एक ज़बर्दस्त ताक़त सब की स्वाधीनता हड़प लेती तब यह खटपट शान्त होती थी।
इस प्रकार जब संसार में राजाओं की वृद्धि हुई तब लोगों का निजू कलह ठण्डा पड़ा, किन्तु इस समय से राजा-राजा में और राज्यपद पाने के लिए उत्तराधिकारियों में वही शक्ति का नियम प्रधान बन गया। जिस समय से लड़ाई के लिए क़िलेबन्दियाँ की जाने लगीं और कोट के द्वारा रक्षित नगरों में धनसम्पन्न और शौर्यशाली पुरुषों की वृद्धि होने लगी, तथा मध्यम श्रेणीवाले लोगों के रिसाले और पलटनें युद्ध के लिए शिक्षित किये जाने लगे-तभी निर्बल और सामान्य वर्ग वाले मनुष्यों पर से उमरावों का कड़ा ज़ुल्म कुछ अंशों में कम हुआ। ज़ुल्म भोगनेवाला यह वर्ग बहुत बार अपने वैर का बदला लेना नहीं भूला; जब से उन्हें अपनी शारीरिक सामर्थ्य दिखाने का अवसर मिला तब से बहुत समय पीछे तक बलवान् उमरावों का जुल्म वैसे ही होता रहा। इस प्रकार का अन्याय-अत्याचार यूरोप के अन्यान्य देशों में फ्रान्स को राज्य क्रान्ति के समय तक प्रचलित था। केवल इङ्गलैण्ड में मध्यम श्रेणी वालों का संप अच्छे ढाँचे पर होगया था और नियमों में भी उचित परि-
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