धर्म का प्रभाव कम था। बल्कि इसकी शक्ति बड़ी प्रबल हो गई थी। इसका प्रभाव इतना बढ़ा हुआ था कि राजा और उमराव अपनी अपार सम्पत्ति धार्मिक प्रभावना के लिए दे डालते थे। इस धर्म की शिक्षा पर विश्वास रख कर, हज़ारों मनुष्य अपनी आत्मा को मुक्त करने के लिए अपने जीवन के सम्पूर्ण ऐहिक सुखों और लालसाओं का परित्याग कर देते थे और दरिद्रावस्था स्वीकार करके भक्ति और प्रार्थना में जीवन बिता देते थे। इस धर्म की शक्ति इतनी व्याप्त थी कि पैलेस्टाइन वाली महापुरुष की समाधि को विधर्मियों के हाथ से मुक्त करने के लिए हज़ारों-लाखों वीर यूरोप और एशिया के समुद्रों और पर्वतों को लाँघते हुए अपनी जान की परवा न करके आ जुटे थे। इसकी सामर्थ्य ऐसी अलौकिक थी कि इसकी आज्ञा के आधीन होकर बड़े-बड़े सार्वभौम राजा अपनी अत्यन्त प्रेमपात्री रानी का सम्बन्ध सदा-सर्वदा के लिए त्याग देते थे, क्योंकि धर्माध्यक्ष यह सिद्धान्त निकालते थे कि इस रानी के साथ वाला सम्बन्ध सात पीढ़ी के भीतर का है, अतएव शास्त्र-निषिद्ध है (किन्तु वास्तव में वह सम्बन्ध चौदह पीढ़ी से भी परे का होता था)। क्रिश्चियन धर्म का इतना प्रबल प्रताप होने पर भी वह मनुष्यों को पारस्परिक युद्ध करने की नीच मनोवृत्तियों पर अंकुश नहीं रख सका; और लोग जो अपने ग़ुलामों और निर्बल आश्रितों पर अत्याचार करते थे उसे किसी प्रकार दूर न हटा सका। फौजी ताक़त से कमज़ोर