पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/५२

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आवेगा, तब तक लोगों के ध्यान में यह बात भी न आवेगी कि इस उन्नति के ज़माने में स्त्रियों की पराधीनता ही एक कलङ्क शेष है। यह बात विशेष आश्चर्य दिलाने वाली भी नहीं है, क्योंकि पुराने ग्रीक लोग अपने राज्य को स्वतन्त्र मानते थे और उन्हें अपने व्यक्तिगत स्वातन्त्र्य का अभिमान भी था,-किन्तु इतना होने पर भी उन में ग़ुलामों का व्यापार प्रचलित था।

७-वास्तव में बात यह है कि पिछली चार-पाँच पीढ़ियों और अब के मनुष्यों को मानव-जाति की पूर्व-स्थिति का बिल्कुल ज्ञान नहीं है कि वह कैसी थी। इसलिए वे थोड़े से पुरुष जो ऐतिहासिक ज्ञान के मर्म्मज्ञ हैं, और वे सूक्ष्म निरीक्षक जो प्राचीन काल के मनुष्यों के नसूने स्वरूप अब भी अवशेष कुछ देशों के जंगलो मनुष्यों को भलीभाँति देख चुके हैं,-वे ही अपने मन में कल्पना कर सकते हैं कि अत्यन्त प्राचीन काल में मनुष्य-समाज की स्थिति किस प्रकार की होगी। अत्यन्त प्राचीन काल के जीवन-व्यवहार में "लाठी उसकी भैंस" और "ज़मीं जोरू ज़ोर की, ज़ोर घटे पर और की" न्याय का कितना अधिक प्राबल्य था-और लोग खुल्लमखुल्ला किस प्रकार इसका प्रतिपादन करते थे, यह बात इस समय के लोगों को विन्दु-विसर्ग मात्र भी मालूम नहीं है। मैं यह कहना नहीं चाहता कि उस समय के लोग इस न्याय को "उद्धतता" या "बेशरमी” से प्रकट करते थे क्योंकि ऐसे