भर कह सकता है कि, ऐसे दूषित मूल से उत्पन्न हुई अन्य रूढियाँ जब नष्ट होगईं तब केवल एक यही रुढ़ि अस्तित्त्व में रह सकी है, और स्त्री-पुरुषों में विषमता रखने वाली चाल "लाठी उसकी भैंस" वाले तत्त्व से प्रकट हुई है।
६-यह बात सुन कर लोगों को आश्चर्य होता है, यह बात भी हमारे लिए अच्छी है। इस ही के कारण सुधार का प्रवाह दिन प्रतिदिन आगे बढ़ता जाता है, और मानवी रीति-नीति सुधरती जाती है, हमें इसका विश्वास होता है। संसार में सबसे अधिक उन्नत दो एक देशों की दशा इस समय इस स्थिति पर पहुँच गई है कि उन्होंने "लाठी उसकी भैंस" वाला तत्त्व सर्वथा त्याग दिया है। यह न्याय अब किसी को पसन्द नहीं है, प्रत्येक देश में मनुष्यों का पारस्परिक सम्बन्ध इस न्याय का घोर विरोध करता है। इतना होने पर भी यदि किसी समय किसी को स्वार्थ के लिए "लाठी उसकी भैंस" वाले नियम पर चलने की आवश्यकता होती है, तो वह समाज की किसी न किसी भलाई का बहाना अपने आगे अवश्य रख लेता है। वस्तुस्थिति इस प्रकार की होजाने के कारण लोग अपने मन का समाधान करने लगे हैं कि अब केवल ज़ोर-ज़ुल्म से काम निकाल लेने के दिन बीत गये, और पहले समय के जो व्यवहार रीति-नीति के रूप में इस समय तक वर्तमान हैं, वे "लाठी उसकी भैंस" वाले नियम के अंश विशेष नहीं है। इस समय लोगों