पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/४६

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जाति के कल्याण का ध्यान धरके-समाज को मज़बूत पायों पर खड़ा करना सोचके नहीं की-इस प्रकार इसकी रचना हुई ही नहीं। सचमुच यदि लम्बे अतीतकाल पर दृष्टि डालोगे तो मालूम होगा कि इस प्रणाली से पहले किसी के ध्यान में मनुष्य-जाति के कल्याण या समाज-व्यवस्था की कल्पना तक नहीं उठी थी-जिन्होंने इस सम्बन्ध की नींव डाली वे सपने में भी समाज का नाम नहीं जानते थे। इस प्रणाली का मूल खोजने जायेंगे तो सब से पहले हमारी दृष्टि वहाँ पँहुचेगी जब अत्यन्त प्राचीन काल में सब से पहले मनुष्य जाति का सुधार होने लगा या उस समय से (स्त्री पुरुषों में परस्पर स्वार्थसिद्धि के कारण और पुरुषों से स्त्रियों में बल और शरीर कुछ कम होने के कारण) कोई एक स्त्री किसी एक पुरुष के आश्रय में रहना पसन्द करती थी। अब भी क़ायदे बनाने और व्यवहार-पद्धति निश्चित करने का यही उपाय है कि मनुष्यों में जैसा सम्बन्ध व्यवहार में प्रचलित होता है, फिर उस ही के अनुसार उस पर इमारत खड़ी की जाती है। अर्थात् एक समय में जो सम्बन्ध व्यवहार के एक अंग विशेष होकर प्रचलित होते हैं, उन्हें ही पीछे से कानून-क़ायदे की संज्ञा मिलती है और समाज में वे सम्मानित होते हैं। सम्मानित होने से वे नियम समाज में संरक्षित हो जाते हैं, केवल शारीरिक बल से अपने अधिकार स्थापित करने में जो टंटे-बखेड़े होते हैं वे ऐसी व्यवस्था से शान्त हो जाते हैं।