से चली आ रही है, किन्तु इस में रंच मात्र भी सन्देह नहीं है कि इसकी नींव न्याय और विवेचना पर नहीं रक्खी गई-बल्कि इसकी उत्पत्ति के कारण बड़े ही निराले हैं। साथ ही इसकी उत्पत्ति मनुष्य के उत्कृष्ट अंगों से नहीं हुई, बल्कि निकृष्ट अंगों से हुई है, यदि मैं इस बात को सिद्ध न कर सकूं तो लोग प्रसन्नता से मेरे ख़िलाफ़ फै़सला करें। यदि मैं यह सिद्ध न कर दूँ कि मेरा न्यायाधीश पक्षपाती है, तो अवश्य मेरे ख़िलाफ़ फै़सला किया जाय। इस बात से बहुत से मुझ से कहेंगे कि, इतनी जोखम तुम अपने सिर क्यों लेते हो-पर सचमुच यह जोखम नहीं है। क्योंकि इतनी सी बात सिद्ध कर देना तो मेरे सम्पूर्ण काम का एक सीधे से सीधा हिस्सा है।
५-जब कोई रूढ़ि, रस्म, आचार-विचार, प्रणाली या क्रिया सर्वसाधारण हो जाती है तब उसके साधारण-पन से यह अनुमान निकाला जाता है कि वह रूढ़ि या रस्म आदि सर्वथा मनुष्य-समाज की हितसाधक है, या एक समय ऐसा अवश्य था जब उससे समाज का हितसाधन होता था, और यह अनुमान बहुत सी बातों में सच्चा भी होता है। जो रूढ़ि प्रारम्भ में मनुष्य समाज की भलाई के लिए एक साधन के तौर पर पसन्द करके प्रचलित की गई हो या ऐसे भावों पर स्थापित की गई हो कि अमुक प्रकार के व्यवहार से अमुक हेतु साध्य होगा, इस प्रकार का अनुभव करने के बाद