पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/३८

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निबाही जाती हैं, उन में उन जंगली रिवाजों से किसी प्रकार कमी न समझनी चाहिए।

३-जो मनुष्य किसी सर्वमान्य मत का खण्डन करने को खड़ा होता है उसके सिर बड़ा भारी बोझ होता है। सब से पहली बात तो यही है कि लोग उस की बात सुनते ही नहीं, यदि समाज उसकी बात सुनने को तैयार हो तो समझना चाहिए कि वह बड़ी सामर्थ्य वाला या भाग्यशाली है। वादी प्रतिवादी को कचहरी से फैसला पाने में जितनी कठिनाइयाँ उठानी पड़ती हैं उनसे कई दरजे ज़ियादा मुश्किलें इस बिचारे को इतनी सी बात के लिए उठानी पड़ती हैं कि लोग उसकी बात सुनने के लिए अपना थोड़ा-सा समय दें। यदि लोग उसकी बात सुनने के लिए ज़रा ठहर भी गये तो फिर उसे इस बात के लिए विवश करते हैं कि वह उनके माने हुए सिद्धान्तों के अनुसार ही अपनी बात सिद्ध करे। प्रत्येक विषय में सुबूत अस्तिपक्ष (affirmative side) को देने पड़ते हैं। यदि एक मनुष्य दूसरे पर ख़ून का इलज़ाम लगाता हो, तो इलज़ाम लगाने वाले का फर्ज़ होता है कि वह उसका ख़ूनी होना साबित करे। पर जिस आरोपी पर ख़ून का इलज़ाम लगाया गया है उसका फ़र्ज़ यह नहीं समझा जाता कि वह अपना निर्दोषपन साबित करे। जिन साधारण ऐतिहासिक घटनाओं की चर्चा लोगों में बहुत कम होती है, उनके विषय में भी जब मतभेद हो