बाहर की बात है, समाज की सत्ता से दूर की बात है। चाहे यह बात सच हो, पर इससे समाज का उत्तरदायित्व बढ़ता है। ऐसा कोई काम समाज को करना ही न चाहिए जिससे किसी मनुष्य का जीवन व्यर्थ जाना सम्भव हो। मा-बापों की तुच्छ दृष्टि और ना-समझी, युवावस्था में अनुभव का अभाव, मन-चाहे काम को करने में आवश्यक साधनों का अभाव, जिन्हें मन नहीं चाहता उन
कामों के करने के अनुकूल साधन––इन सब कारणों से संसार के बहुत से मनुष्य-व्यक्ति अपने जीवन को सफल नहीं कर सकते। अर्थात् जिन कामों में उनका मन लगता है उन्हें वे कर नहीं सकते और जिन्हें करने को उनका मन नहीं चाहता वे उनसे कराये जाते हैं––इसलिए उन के जीवन निष्फल होते हैं। पुरुष-वर्ग के विषय में जितनी ऐसी घटनाएँ घटती हैं, उनके कारणों का हटाना समाज की सत्ता से बाहर की बात है; किन्तु स्त्रियों को जो यह सज़ा भोगनी पड़ती है उसका कारण तो प्रत्यक्ष क़ानून और क़ानून के समान ही मजबुत लोक-रूढ़ि है। अवनत और बर्बर देशों में वर्ण-भेद, जाति-भेद, धर्म-भेद आदि से; तथा विजयी और पराजित देशों में जातीयता (Nationality) के भेद से––पुरुषों की सामाजिक और राजनैतिक स्थिति में जैसा अन्तर होता है––वैसा ही अन्तर संसार भर में स्त्रियों की स्थिति ( sex ) पर है। प्रायः सभी इज्जत-आबरू वाले कामों को
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