पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२९७

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सकेगा—तभी मनुष्य-जाति का नैतिक सुधार वास्तविक रूप से प्रारम्भ होगा।

१९—केवल जाति-भेद ही के कारण जो मनुष्य-प्राणी बहुत से अधिकारों के अयोग्य समझे जाते थे-इस प्रथा के बन्द होने से अब तक जिन-जिन फ़ायदों का निरूपण किया गया है, वे सब मनुष्य-जाति की लक्ष्य करके लिये गये हैं। हम इस बात का निरूपण कर आये हैं कि इस अनुचित प्रयास के बन्द होने से सब से पहले तो संसार के उपयोग में आने वाले बुद्धिबल तथा कार्य-सामर्थ में उन्नति होगी; और दूसरे स्त्री-पुरुष के पारस्परिक सम्बन्ध से जो स्थिति उत्पन्न होगी उस में सुधार होगा। इसका जो विचार किया गया है वह सम्पूर्ण समाज को लक्ष्य में रख कर किया गया है; किन्तु ख़ास व्यक्ति पर इसका क्या असर होगा सो नहीं सोचा गया; किन्तु इस अवसर पर सबसे अधिक लाभ का निरूपण न करना भी उचित नहीं है। मनुष्य-जाति के बिल्कुल आधे भाग के बन्धन से मुक्त होने पर उसके सुख में जैसी वृद्धि होगी, वह अनिर्वचनीय है। दूसरों की इच्छाओं के अधीन होकर पराधीनता में जीवन बिताना और स्वतन्त्र होकर जीवन बिताने में जितना अन्तर है, उतना ही अन्तर स्त्रियों की इस समय की और आगे आने वाली स्थिति में होगा। सब से अधिक अन्न और वस्त्र की आवश्यकताओं के बाद मनुष्य की यदि और कोई अत्यावश्यक चीज़ है तो वह स्वाधीनता ही है।