समानता निवास करती हो—अर्थात् मानसिक और नैतिक सम्पत्ति की समानता होते हुए, एक-एक विशेष गुण हो, जिससे दोनों को दोनों पर मोहित होने का अवसर मिले, तथा उन्नति के मार्ग में एक दूसरे के सहायक हों—ऐसे स्त्री-पुरुषों का विवाह सम्बन्ध हो तो उसका परिणाम कितना लाभदायक और हितकारी हो और वह दृष्टान्त कितना उज्ज्वल हो, इसके वर्णन करने में मैं अपना समय नहीं लगाता। क्योंकि जो मनुष्य इसकी कल्पना कर सकते हैं उनके लिए वर्णन की कोई आवश्यकता नहीं, और जो कल्पना नहीं कर सकते उनके लिए मेरा वर्णन आकाश में क़िला बनाने के समान होगा। किन्तु यह मैं विश्वास और निश्चय-पूर्वक कहूँगा कि विवाह को सबसे अधिक उदार कल्पना यदि कोई हो सकती है तो वह यही है; और जो आचार-विचार, रीति-रिवाज इस से भिन्न कल्पना की ओर ले जाते हैं, या इस कल्पना को ही दूसरी ओर झुकाने की कोशिश करते हैं, तो बाहर से उनका रूप चाहे जैसा लुभावना हो-किन्तु वह मनुष्य-जाति की प्राचीन जङ्गली अवस्था के चिह्न के समान ही हैं। जब सामाजिक सम्बन्धों में सब से अधिक महत्त्व वाले और दीर्घपरिणामी विवाह-सम्बन्ध की दीवार न्याय की नींव पर रक्खी जायगी, समानता का राज्य पूर्ण रूप से प्रचलित होगा, प्रत्येक मनुष्य ऐसे मनुष्य-प्राणी को अपना आजीवन संगी बनावेगा
जो बुद्धि-विकाश के विषय में सब प्रकार से समानता कर
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