प्रविष्ट हो सकता है उसकी स्थिति तो ख़ास करके गड़बड़ भरी होती है। समाज के द्वारा प्रतिष्ठित लोगों के मण्डल में प्रविष्ट होने वाले व्यक्ति के प्रवेश का तमाम दारमदार उसके विषय में लोगों की राय पर अवलम्बित होता है; इसलिए उसकी रहन सहन, उसका चाल-चलन और व्यवहार चाहे जितनी सभ्यता से भरा हो और वह चाहे जैसा निर्दोष और निर्मल हो किन्तु सुधार के विषय में उसके विचार आगे बढ़े रहने के कारण लोग उसे पसन्द नहीं करते और इसलिए वह लोगों के मान्य-मण्डल में प्रविष्ट नहीं हो सकता। अधिकांश स्त्रियों के ऐसे ही विचार होते हैं, प्रति दस स्त्रियों में नौ के विचार ऐसे ही ग़लत होते हैं,––कि हम जो भले घरानों और प्रतिष्ठित मण्डलों में प्रविष्ट नहीं हो सकतीं उसका कारण यही है कि दुर्भाग्य से हमारे स्वामी धार्मिक विचारों से विरुद्ध हैं, या उनके राजनैतिक विचार उद्धत-वर्ग से मिलते-जुलते हैं––नहीं तो हमारे समान योग्यता वाले व्यक्तियों के उन मण्डलों में प्रविष्ट हो जाने पर भी हम बाक़ी क्यों रहतीं? अधिकांश स्त्रियों के ऐसे ही ख़्याल होते हैं कि इस बात के ही कारण मेरे पुत्र को अच्छी नौकरी या अच्छा ओहदा नहीं मिलता, या मेरी पुत्री को अच्छा घराना और अच्छा वर नहीं मिलता। घराने में हम दूसरों के समान होने पर भी तथा अन्य लोगों के समान आदर-सत्कार के पात्र होने पर भी, हमें जो आदर-सम्मान नहीं मिलता उसका कारण यही है। यह
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