१४-कारण यह है कि प्रचलित लोकमत के ख़िलाफ़ चलने वालों को बहुत कुछ अपनी निजू हानि उठानी पड़ती है, या तो कुछ अंशों में उन्हें अपना सामाजिक सम्मान खोना पड़ता है, या आर्थिक हानि उठानी पड़ती है, और बहुत बार तो उन्हें अपने जीवन-निर्व्वाह का साधन भी खो देना पड़ता है। अपने उत्कृष्ट विचारों के अनुसार प्रत्यक्ष जीवन बनाने की इच्छा रखने वाले पुरुष ऐसे नुक़सानों को प्रसन्नता से सह लेते हैं; किन्तु अपने कुटुम्ब वालों पर ऐसी हानियों का विचार करके वे ठिठक जाते हैं। कुटुम्ब में पुरुष के उच्च विचारों को ठिठकाने वाले व्यक्ति दो ही होते हैं, एक तो स्त्री और दूसरी पुत्री; क्योंकि पुत्र के विषय में पुरुष का यही ख़याल होता है कि इस के विचार तो मेरे समान है हीं, और एक भलाई के काम में मैं जितना आगे बढ़ने और हानि उठाने के लिए तैयार हूँ उतना ही आगे बढ़ने और हानि उठाने में यह खुशी से भाग लेगा; किन्तु स्त्री और बेटी की तो बात ही न्यारी है। बेटी को अच्छा वर और अच्छा घर मिलना लोकमत के अनुसार चलने ही से नसीब हो सकता है। स्त्री को यह ख़बर हो नहीं होती कि ऐसा स्वार्थत्याग किस लिए किया जाता है; और यदि वह स्वार्थत्याग की थोड़ा बहुत समझती भी है तो, उसका कारण पति पर उसका विश्वास और उसके लाभ की आशा का ही कुछ अंश हो सकता है। पति को स्वार्थत्याग के साथ जिस उल्लास,
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