पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२७१

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हैं। घटना इस प्रकार घटा करती है कि किसी ख़ास विषय के सम्बन्ध में उदार कल्पना और प्रत्यक्ष व्यवहार में विशेष अन्तर होता है; और इस ही नियम के अनुसार वीरकाल में 'शिवेलरी' की प्रवृत्ति और उसकी उदार कल्पना में विशेष अन्तर था, यह बात यद्यपि सत्य है, फिर भी मनुष्य-जाति के नैतिक इतिहास में वीरकाल की 'शिवेलरी' का स्थान अवश्य ऊँचा है। यद्यपि उस समय का सामाजिक सङ्गठन बहुत ही अव्यवस्थित था और लोगों की सामाजिक स्थिति तथा भिन्न-भिन्न रूढ़ियों का स्वरूप देखते हुए नीति का प्रवाह बहुत ही धीमा था, पर ऐसी स्थिति में पले हुए लोगों ने एक उच्च नैतिक आशय की कल्पना करके उसके अनुसार अपनी जीवनी बनाने का प्रयास किया था; यही ध्यान देने और विचारने योग्य है। और यद्यपि इस ख़याल के बहुत ऊँचा होने के कारण इसका मूल उद्देश लगभग विपरीत ही था, फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि यह निष्फल हो रहा, क्योंकि उन से पिछले ज़माने वाले लोगों की मनोवृत्तियों पर उसका बड़ा भारी प्रभाव हुआ है।

९-वीरकाल की नैतिक कल्पना मनुष्य-जाति के नैतिक सुधार पर स्त्रियों की इच्छा का अन्तिम परिणाम है; यदि इस काल में भी स्त्रियों की पराधीनता वैसी की वैसी ही प्रचलित रहे तो वीरकाल की वह 'शिवेलरी' वाली उदार कल्पना व्यर्थ ही नष्ट हुई; क्योंकि नीति की दृष्टि से देखते हुए स्त्रियों